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येरूशालेम की ओर जाना

21 जब हमने उनसे विदा लेकर जलमार्ग से यात्रा प्रारम्भ की और हमने सीधे कॉस द्वीप का मार्ग लिया, फिर अगले दिन रोदॉस द्वीप का और वहाँ से पतारा द्वीप का. वहाँ फ़ॉयनिके नगर जाने के लिए एक जलयान तैयार था. हम उस पर सवार हो गए और हमने यात्रा प्रारम्भ की. हमें बायीं ओर कुप्रोस द्वीप दिखाई दिया. हम उसे छोड़ कर सीरिया प्रदेश की ओर बढ़ते गए और त्सोर नगर जा पहुँचे क्योंकि वहाँ जलयान से सामान उतारा जाना था. वहाँ हमने शिष्यों का पता लगाया और उनके साथ सात दिन रहे. पवित्रात्मा के माध्यम से वे बार-बार पौलॉस से येरूशालेम न जाने की विनती करते रहे. जब वहाँ से हमारे जाने का समय आया, वे परिवार के साथ हमें विदा करने नगर सीमा तक आए. समुद्र तट पर हमने घुटने टेक कर प्रार्थना की और एक दूसरे से विदा ली. हम जलयान में सवार हो गए और वे सब अपने-अपने घर लौट गए.

त्सोर नगर से शुरु की गई यात्रा पूरी कर हम तोलेमाई नगर पहुँचे. स्थानीय शिष्यों से भेंट कर हम एक दिन वहीं रुक गए. अगले दिन यात्रा करते हुए हम कयसरिया आए और प्रचारक फ़िलिप्पॉस के घर गए, जो उन सात दीकनों में से एक थे. हम उन्हीं के घर में ठहरे. उनकी चार कुँवारी पुत्रियां थीं, जो भविष्यवाणी किया करती थीं. 10 जब हमें, वहाँ रहते हुए कुछ दिन हो गए, वहाँ अगाबुस नामक एक भविष्यद्वक्ता आए, जो यहूदिया प्रदेश के थे. 11 वह जब हमसे भेंट करने आए, उन्होंने पौलॉस का पटुका लेकर उससे अपने हाथ-पैर बान्धते हुए कहा, “पवित्रात्मा का कहना है, ‘येरूशालेम के यहूदी उस व्यक्ति को इसी रीति से बाँधेंगे जिसका यह पटुका है और उसे अन्यजातियों के हाथों में सौंप देंगे.’” 12 यह सुनकर स्थानीय शिष्यों और हमने भी पौलॉस से येरूशालेम न जाने की विनती की. 13 पौलॉस ने उत्तर दिया, “इस प्रकार रो-रोकर मेरा हृदय क्यों तोड़ रहे हो? मैं येरूशालेम में न केवल बन्दी बनाए जाने परन्तु प्रभु मसीह येशु के लिए मार डाले जाने के लिए भी तैयार हूँ.” 14 इसलिए जब उन्हें मनाना असम्भव हो गया, हम शान्त हो गए. हम केवल यही कह पाए, “प्रभु ही की इच्छा पूरी हो!”

पौलॉस येरूशालेम में

15 कुछ दिन बाद हमने तैयारी की और येरूशालेम के लिए चल दिए. 16 कयसरिया नगर के कुछ शिष्य भी हमारे साथ हो लिए. ठहरने के लिए हमें कुप्रोसवासी म्नेसॉन के घर ले जाया गया. वह सबसे पहिले के शिष्यों में से एक था.

17 येरूशालेम पहुँचने पर विश्वासियों ने बड़े आनन्दपूर्वक हमारा स्वागत किया. 18 अगले दिन पौलॉस हमारे साथ याक़ोब के निवास पर गए, जहाँ सभी प्राचीन इकट्ठा थे. 19 नमस्कार के बाद पौलॉस ने एक-एक करके वह सब बताना शुरु किया, जो परमेश्वर ने उनकी सेवा के माध्यम से अन्यजातियों के बीच किया था. 20 यह सब सुन, वे परमेश्वर का धन्यवाद करने लगे. उन्होंने पौलॉस से कहा, “देखिए, प्रियजन, यहूदियों में हज़ारों हैं जिन्होंने विश्वास किया है. वे सभी व्यवस्था के मजबूत समर्थक भी हैं. 21 उन्होंने यह सुन रखा है कि आप अन्यजातियों के बीच निवास कर रहे यहूदियों को यह शिक्षा दे रहे हैं कि मोशेह की व्यवस्था छोड़ दो, न तो अपने शिशुओं का ख़तना करो और न ही प्रथाओं का पालन करो. 22 अब बताइए, हम क्या करें? उन्हें अवश्य यह तो मालूम हो ही जाएगा कि आप यहाँ आए हुए हैं. 23 इसलिए हमारा सुझाव मानिए: यहाँ ऐसे चार व्यक्ति हैं, जिन्होंने शपथ ली है, 24 आप उनके साथ जाइए, शुद्ध होने की विधि पूरी कीजिए तथा उनके मुण्डन का खर्च उठाइए. तब सबको यह मालूम हो जाएगा कि जो कुछ भी आपके विषय में कहा गया है, उसमें कोई सच्चाई नहीं है और आप स्वयं व्यवस्था का पालन करते हैं.

25 “जहाँ तक अन्यजाति शिष्यों का प्रश्न है, हमने उन्हें अपना फैसला लिखकर भेज दिया है कि वे मूर्तियों को चढ़ाई भोजन सामग्री, लहू, गला घोंट कर मारे गए पशुओं के माँस के सेवन से तथा वेश्यागामी से परे रहें.”

26 अगले दिन पौलॉस ने इन व्यक्तियों के साथ जाकर स्वयं को शुद्ध किया. तब वह मन्दिर गए कि वह वहाँ उस तारीख की सूचना दें, जब उनकी शुद्ध करने की रीति की अवधि समाप्त होगी और उनमें से हर एक के लिए भेंट चढ़ाई जाएगी.

पौलॉस का बन्दी बनाया जाना

27 जब सात दिन प्रायः समाप्त होने पर ही थे, आसिया प्रदेश से वहाँ आए कुछ यहूदियों ने पौलॉस को मन्दिर में देख लिया. उन्होंने सारी मौजूद भीड़ में कोलाहल मचा दिया और पौलॉस को यह कहते हुए बन्दी बना लिया, 28 “प्रिय इस्राएलियो! हमारी सहायता करो! यही है वह, जो हर जगह हमारे राष्ट्र, व्यवस्था के नियमों तथा इस मन्दिर के विरुद्ध शिक्षा देता फिर रहा है. इसके अलावा यह यूनानियों को भी मन्दिर के अंदर ले आया है. अब यह पवित्र स्थान अपवित्र हो गया है.” 29 वास्तव में इसके पहले उन्होंने इफ़ेसॉसवासी त्रोफ़िमस को पौलॉस के साथ नगर में देख लिया था इसलिए वे समझे कि पौलॉस उसे अपने साथ मन्दिर में ले गए थे.

30 सारे नगर में खलबली मच गई. लोग एक साथ पौलॉस की ओर लपके, उन्हें पकड़ा और उन्हें घसीट कर मन्दिर के बाहर कर दिया और तुरन्त द्वार बन्द कर दिए गए. 31 जब वे पौलॉस की हत्या की योजना कर ही रहे थे, रोमी सेनापति को सूचना दी गई कि सारे नगर में कोलाहल मचा हुआ है. 32 सेनापति तुरन्त अपने साथ कुछ सैनिक और अधिकारियों को लेकर दौड़ता हुआ घटना स्थल पर जा पहुँचा. सेनापति और सैनिकों को देखते ही, उन्होंने पौलॉस को पीटना बन्द कर दिया. 33 सेनापति ने आगे बढ़कर पौलॉस को पकड़ कर उन्हें दो-दो बेड़ियों से बान्धने की आज्ञा दी और लोगों से प्रश्न किया कि यह कौन है और क्या किया है इसने? 34 किन्तु भीड़ में कोई कुछ चिल्ला रहा था तो कोई कुछ. जब सेनापति कोलाहल के कारण सच्चाई न जान पाया, उसने पौलॉस को सेना गढ़ में ले जाने का आदेश दिया. 35 जब वे सीढ़ियों तक पहुँचे, गुस्से में बलवा करने को उतारु भीड़ के कारण सुरक्षा की दृष्टि से सैनिक पौलॉस को उठाकर अंदर ले गए. 36 भीड़ उनके पीछे-पीछे यह चिल्लाती हुई चल रही थी, “मार डालो उसे!”

37 जब वे सैनिक घर पर पहुँचने पर ही थे, पौलॉस ने सेनापति से कहा, “क्या मैं आप से कुछ कह सकता हूँ?” सेनापति ने आश्चर्य से पूछा, “तुम यूनानी भाषा जानते हो? 38 इसका अर्थ यह है कि तुम वह मिस्री नहीं हो जिसने कुछ समय पहले विद्रोह कर दिया था तथा जो चार हज़ार आतंकियों को जंगल में ले गया था.”

39 पौलॉस ने उसे उत्तर दिया, “मैं किलिकिया प्रदेश के तारस्यॉस नगर का एक यहूदी नागरिक हूँ. मैं आपकी आज्ञा पाकर इस भीड़ से कुछ कहना चाहता हूँ.”

40 आज्ञा मिलने पर पौलॉस ने सीढ़ियों पर खड़े होकर भीड़ से शांत रहने को कहा. जब वे सब शांत हो गए, उन्होंने भीड़ को इब्री भाषा में सम्बोधित किया:

结束第三次宣教旅程

21 我们离别了他们以后,船就直航到了哥士,第二天到罗底,从那里开往帕大拉; 遇见了一艘开往腓尼基的船,就上船起行。 我们远远看见塞浦路斯,就从南边驶过,直航叙利亚,在推罗靠了岸,因为船要在那里卸货。 我们找到了一些门徒,就在那里住了七天。他们凭着圣灵的指示告诉保罗不要上耶路撒冷去。 过了这几天,我们就启程前行,他们众人带着妻子儿女送我们到城外。我们跪在海滩上祷告, 互相道别。我们上了船,他们就回家去了。

我们从推罗继续航行,到了多利买,问候那里的弟兄,与他们同住了一天。 第二天我们离开那里,来到该撒利亚,到了传福音的腓利家里,与他住在一起。他是那七位执事中的一位。 他有四个女儿,都是童女,是会说预言的。 10 我们住了几天之后,有一位先知,名叫亚迦布,从犹太下来。 11 他来见我们,把保罗的腰带拿过来,绑住自己的手脚,说:“圣灵说,犹太人在耶路撒冷要这样捆绑这腰带的主人,把他交在外族人的手里。” 12 我们听了这些话,就和当地的人劝保罗不要去耶路撒冷。 13 保罗却回答:“你们为甚么哭,使我心碎呢?我为主耶稣的名,不但被捆绑,就算死在耶路撒冷我也都准备好了。” 14 他既然不听劝,我们只说了“愿主的旨意成就”,就不出声了。

15 过了几天,我们收拾行装,上耶路撒冷去。 16 有该撒利亚的几个门徒同我们在一起,领我们到一个塞浦路斯人拿孙家里住宿;他作了门徒已经很久了。

保罗报告工作的情况

17 我们到了耶路撒冷,弟兄们欢欢喜喜接待我们。 18 第二天,保罗和我们一同去见雅各,长老们也都在座。 19 保罗问候了他们,就把 神借着他的工作在外族人中所行的事,一一述说出来。 20 他们听了,就赞美 神,对保罗说:“弟兄,你看,犹太人中信主的有好几万,都是对律法很热心的人。 21 他们听说,你教导所有在外族人中的犹太人背弃摩西,叫他们不要给孩子行割礼,也不要遵守规例。 22 他们总会听见你来了,那怎么办呢? 23 你就照我们的话作吧,我们这里有四个人,都有愿在身。 24 你把他们带去,和他们一同行洁净礼,并且替他们付钱,让他们剃去头发,这样大家就知道以前所听见关于你的事,都不是真实的,也知道你是遵守律法循规蹈矩而行的人。 25 至于信主的外族人,我们已经写了信,吩咐他们要禁戒祭偶像的食物、血、勒死的牲畜和淫乱。” 26 保罗就把那几个人带走了,第二天和他们一同行了洁净礼。他们进了殿,报明了他们洁净期满的日子,以及各人献祭的时间。

保罗在圣殿被犹太人捉住

27 七日将完的时候,从亚西亚来的犹太人看见保罗在殿里,就煽动群众,并且捉住他, 28 喊叫着说:“以色列人哪,快来帮忙!这个人到处教导众人反对人民,反对律法和这个地方,他甚至把希腊人也带进殿里,污秽了这圣地。” 29 原来他们看见过以弗所人特罗非摩同保罗在城里,就以为保罗带他进了殿。 30 于是全城震动,民众一齐跑来,捉住保罗,拉出殿外,殿门就立刻关起来了。 31 他们正想杀他的时候,有人报告营部的千夫长,说:“整个耶路撒冷都乱了!” 32 千夫长立刻带着一些百夫长和士兵跑到他们那里。众人一看见千夫长和士兵,就停止殴打保罗。 33 于是千夫长上前捉住保罗,吩咐人用两条铁链捆住他,问他是甚么人,作过甚么事。 34 那时众人叫这个喊那个,吵吵闹闹,以致千夫长没有办法知道真相,只好下令把保罗带到营楼去。 35 保罗到了台阶下面的时候,士兵把他抬起来,因为群众猛挤, 36 而且有一群人跟在后面叫喊:“干掉他!”

保罗为自己申辩(A)

37 他们带着保罗快到营楼的时候,保罗对千夫长说:“我可以跟你讲一句话吗?”千夫长说:“你懂希腊话吗? 38 难道你不就是不久以前作乱的、带领四千个杀手到旷野去的那个埃及人吗?” 39 保罗说:“我是犹太人,是基利家的大数人,并不是无名小城的公民,求你准我向民众讲几句话。” 40 千夫长准许了他,保罗就站在台阶上,向民众作了一个手势。大家安静下来了,保罗就用希伯来语讲话,说:

पौलुस का यरूशलेम जाना

21 फिर उनसे विदा हो कर हम ने सागर में अपनी नाव खोल दी और सीधे रास्ते कोस जा पहुँचे और अगले दिन रोदुस। फिर वहाँ से हम पतरा को चले गये। वहाँ हमने एक जहाज़ लिया जो फिनीके जा रहा था।

जब साइप्रस दिखाई पड़ने लगा तो हम उसे बायीं तरफ़ छोड़ कर सीरिया की ओर मुड़ गये क्योंकि जहाज़ को सूर में माल उतारना था सो हम भी वहीं उतर पड़े। वहाँ हमें अनुयायी मिले जिनके साथ हम सात दिन तक ठहरे। उन्होंने आत्मा से प्रेरित होकर पौलुस को यरूशलेम जाने से रोकना चाहा। फिर वहाँ ठहरने का अपना समय पूरा करके हमने विदा ली और अपनी यात्रा पर निकल पड़े। अपनी पत्नियों और बच्चों समेत वे सभी नगर के बाहर तक हमारे साथ आये। फिर वहाँ सागर तट पर हमने घुटनों के बल झुक कर प्रार्थना की। और एक दूसरे से विदा लेकर हम जहाज़ पर चढ़ गये। और वे अपने-अपने घरों को लौट गये।

सूर से जल मार्ग द्वारा यात्रा करते हुए हम पतुलिमयिस में उतरे। वहाँ भाईयों का स्वागत सत्कार करते हम उनके साथ एक दिन ठहरे। अगले दिन उन्हें छोड़ कर हम कैसरिया आ गये। और इंजील के प्रचारक फिलिप्पुस के, जो चुने हुए विशेष सात सेवकों में से एक था, घर जा कर उसके साथ ठहरे। उसके चार कुवाँरी बेटियाँ थीं जो भविष्यवाणी किया करती थीं।

10 वहाँ हमारे कुछ दिनों ठहरे रहने के बाद यहूदिया से अगबुस नामक एक नबी आया। 11 हमारे निकट आते हुए उसने पौलुस का कमर बंध उठा कर उससे अपने ही पैर और हाथ बाँध लिये और बोला, “यह है जो पवित्र आत्मा कह रहा है-यानी यरूशलेम में यहूदी लोग, जिसका यह कमर बंध है, उसे ऐसे ही बाँध कर विधर्मियों के हाथों सौंप देंगे।”

12 हमने जब यह सुना तो हमने और वहाँ के लोगों ने उससे यरूशलेम न जाने की प्रार्थना की। 13 इस पर पौलुस ने उत्तर दिया, “इस प्रकार रो-रो कर मेरा दिल तोड़ते हुए यह तुम क्या कर रहे हो? मैं तो यरूशलेम में न केवल बाँधे जाने के लिये बल्कि प्रभु यीशु मसीह के नाम पर मरने तक को तैयार हूँ।”

14 क्योंकि हम उसे मना नहीं पाये। सो बस इतना कह कर चुप हो गये, “जैसी प्रभु की इच्छा।”

15 इन दिनों के बाद फिर हम तैयारी करके यरूशलेम को चल पड़े। 16 कैसरिया से कुछ शिष्य भी हमारे साथ हो लिये थे। वे हमें साइप्रस के एक व्यक्ति मनासोन के यहाँ ले गये जो एक पुराना शिष्य था। हमें उसी के साथ ठहरना था।

पौलुस की याकूब से भेंट

17 यरूशलेम पहुँचने पर भाईयों ने बड़े उत्साह के साथ हमारा स्वागत सत्कार किया। 18 अगले दिन पौलुस हमारे साथ याकूब से मिलने गया। वहाँ सभी अग्रज उपस्थित थे। 19 पौलुस ने उनका स्वागत सत्कार किया और उन सब कामों के बारे में जो परमेश्वर ने उसके द्वारा विधर्मियों के बीच कराये थे, एक एक करके कह सुनाया।

20 जब उन्होंने यह सुना तो वे परमेश्वर की स्तुति करते हुए उससे बोले, “बंधु तुम तो देख ही रहे हो यहाँ कितने ही हज़ारों यहूदी ऐसे हैं जिन्होंने विश्वास ग्रहण कर लिया है। किन्तु वे सभी व्यवस्था के प्रति अत्यधिक उत्साहित हैं। 21 तेरे विषय में उनसे कहा गया है कि तू विधर्मियों के बीच रहने वाले सभी यहूदियों को मूसा की शिक्षाओं को त्यागने की शिक्षा देता है। और उनसे कहता है कि वे न तो अपने बच्चों का ख़तना करायें और न ही हमारे रीति-रिवाज़ों पर चलें।

22 “सो क्या किया जाये? वे यह तो सुन ही लेंगे कि तू आया हुआ है। 23 इसलिये तू वही कर जो तुझ से हम कह रहे हैं। हमारे साथ चार ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने कोई मन्नत मानी है। 24 इन लोगों को ले जा और उनके साथ शुद्धीकरण समारोह में सम्मिलित हो जा। और उनका खर्चा दे दे ताकि वे अपने सिर मुँडवा लें। इससे सब लोग जान जायेंगे कि उन्होंने तेरे बारे में जो सुना है, उसमें कोई सचाई नहीं है बल्कि तू तो स्वयं ही व्यवस्था के अनुसार जीवन जीता है।

25 “जहाँ तक विश्वास ग्रहण करने वाले ग़ैर यहूदियों का प्रश्न है, हमने उन्हें एक पत्र में लिख भेजा है,

‘मूर्तियों पर चढ़ाया गया भोजन तुम्हें नहीं लेना चाहिये।

गला घोंट कर मारे गये किसी भी पशु का मांस खाने से बचें और लहू को कभी न खायें।

व्यभिचार से बचे रहो।’”

पौलुस का बंदी होना

26 इस प्रकार पौलुस ने उन लोगों को अपने साथ लिया और उन लोगों के साथ अपने आप को भी अगले दिन शुद्ध कर लिया। फिर वह मन्दिर में गया जहाँ उसने घोषणा की कि शुद्धीकरण के दिन कब पूरे होंगे और हममें से हर एक के लिये चढ़ावा कब चढ़ाया जायेगा।

27 जब वे सात दिन लगभग पूरे होने वाले थे, कुछ यहूदियों ने उसे मन्दिर में देख लिया। उन्होंने भीड़ में सभी लोगों को भड़का दिया और पौलुस को पकड़ लिया। 28 फिर वे चिल्ला कर बोले, “इस्राएल के लोगो सहायता करो। यह वही व्यक्ति है जो हर कहीं हमारी जनता के, हमारी व्यवस्था के और हमारे इस स्थान के विरोध में लोगों को सिखाता फिरता है। और अब तो यह विधर्मियों को मन्दिर में ले आया है। और इसने इस प्रकार इस पवित्र स्थान को ही भ्रष्ट कर दिया है।” 29 (उन्होंने ऐसा इसलिये कहा था कि त्रुफिमुस नाम के एक इफिसी को नगर में उन्होंने उसके साथ देखकर ऐसा समझा था कि पौलुस उसे मन्दिर में ले गया है।)

30 सो सारा नगर विरोध में उठ खड़ा हुआ। लोग दौड़-दौड़ कर चढ़ आये और पौलुस को पकड़ लिया। फिर वे उसे घसीटते हुए मन्दिर के बाहर ले गये और तत्काल फाटक बंद कर दिये गये। 31 वे उसे मारने का जतन कर ही रहे थे कि रोमी टुकड़ी के सेनानायक के पास यह सूचना पहुँची कि समुचे यरूशलेम में खलबली मची हुई है। 32 उसने तुरंत कुछ सिपाहियों और सेना के अधिकारियों को अपने साथ लिया और पौलुस पर हमला करने वाले यहूदियों की ओर बढ़ा। यहूदियों ने जब उस सेनानायक और सिपाहियों को देखा तो उन्होंने पौलुस को पीटना बंद कर दिया।

33 तब वह सेनानायक पौलुस के पास आया और उसे बंदी बना लिया। उसने उसे दो ज़ंजीरों में बाँध लेने का आदेश दिया। फिर उसने पूछा कि वह कौन है और उसने क्या किया है? 34 भीड़ में से कुछ लोगों ने एक बात कही तो दूसरों ने दूसरी। इस हो-हुल्लड़ में क्योंकि वह यह नहीं जान पाया कि सच्चाई क्या है, इसलिये उसने आज्ञा दी कि उसे छावनी में ले चला जाये। 35-36 पौलुस जब सीढ़ियों के पास पहुँचा तो भीड़ में फैली हिंसा के कारण सिपाहियों को उसे अपनी सुरक्षा में ले जाना पड़ा। क्योंकि उसके पीछे लोगों की एक बड़ी भीड़ यह चिल्लाते हुए चल रही थी कि इसे मार डालो।

37 जब वह छावनी के भीतर ले जाया जाने वाला ही था कि पौलुस ने सेनानायक से कहा, “क्या मैं तुझसे कुछ कह सकता हूँ?”

सेनानायक बोला, “क्या तू यूनानी बोलता है? 38 तो तू वह मिस्री तो नहीं है न जिसने कुछ समय पहले विद्रोह शुरू कराया था और जो यहाँ रेगिस्तान में चार हज़ार आतंकवादियों की अगुवाई कर रहा था?”

39 पौलुस ने कहा, “मैं सिलिकिया के तरसुस नगर का एक यहूदी व्यक्ति हूँ। और एक प्रसिद्ध नगर का नागरिक हूँ। मैं तुझसे चाहता हूँ कि तू मुझे इन लोगों के बीच बोलने दे।”

40 उससे अनुमति पा कर पौलुस ने सीढ़ियों पर खड़े होकर लोगों की तरफ़ हाथ हिलाते हुए संकेत किया। जब सब शांत हो गये तो पौलुस इब्रानी भाषा में लोगों से कहने लगा।

保罗前往耶路撒冷

21 我们和众人道别之后,乘船直接驶往哥士,第二天到达罗底,从那里前往帕大喇, 在帕大喇遇到一艘开往腓尼基的船,就上了船。 塞浦路斯遥遥在望,船从该岛的南面绕过,一直驶向叙利亚。因为船要在泰尔卸货,我们就在那里上了岸, 找到当地的门徒后,便和他们同住了七天。他们受圣灵的感动力劝保罗不要去耶路撒冷。 时间到了,我们继续前行,众门徒和他们的妻子儿女送我们出城。大家跪在岸边祷告之后,彼此道别。 我们上了船,众人也回家去了。

我们从泰尔乘船抵达多利买,上岸探访那里的弟兄姊妹,和他们住了一天。 第二天我们离开那里,来到凯撒利亚,住在传道人腓利家里。他是当初选出的七位执事之一。 腓利有四个未出嫁的女儿,都能说预言。 10 过了几天,一个名叫亚迦布的先知从犹太下来。 11 他到了我们这里,拿保罗的腰带绑住自己的手脚,说:“圣灵说,‘耶路撒冷的犹太人也要这样捆绑这腰带的主人,把他交给外族人。’”

12 听到这话,我们和当地的信徒都苦劝保罗不要去耶路撒冷。 13 但保罗说:“你们为什么这样哭泣,令我心碎呢?我为主耶稣的名甘愿受捆绑,甚至死在耶路撒冷。”

14 我们知道再劝也无济于事,只好对他说:“愿主的旨意成就。”

15 过了几天,我们收拾行装启程上耶路撒冷。 16 有几个凯撒利亚的门徒和我们一起去,并带我们到一个信主已久的塞浦路斯人拿孙家里住宿。

保罗会见雅各和众长老

17 我们抵达耶路撒冷后,受到弟兄姊妹的热烈欢迎。 18 第二天,保罗和我们去见雅各,众长老都在那里。 19 保罗向大家问安之后,便一一述说上帝如何借着他传福音给外族人。 20 大家听了,都同声赞美上帝,又对保罗说:“弟兄,你知道数以万计的犹太人信了主,他们都严守律法。 21 他们听见有人说你教导住在外族人中的犹太人背弃摩西的律法,不替孩子行割礼,也不遵守犹太人的规矩。 22 他们一定会听到你来这里的消息,这该怎么办? 23 请你听我们的建议,这里有四位向上帝许过愿的弟兄, 24 你和他们一起去行洁净礼,并由你替他们付费,让他们可以剃头,好叫众人知道你严守律法,循规蹈矩,关于你的传闻都是假的。 25 至于那些外族信徒,我们已经写信吩咐他们,不可吃祭过偶像的食物,不可吃血和勒死的牲畜,不可淫乱。”

保罗被捕

26 于是,保罗和四位弟兄第二天行了洁净礼,然后上圣殿报告他们洁净期满的日子,好在期满后让祭司为他们每个人献祭物。 27 当七日的洁净期将满的时候,有些从亚细亚来的犹太人发现保罗在圣殿里,就煽动众人去抓他。 28 他们高喊:“以色列人快来帮忙!就是这人到处教唆人反对我们的民族、律法和圣殿。他还带希腊人进圣殿,玷污这圣地。” 29 这是因为他们在城里见过一个名叫特罗非摩的以弗所人和保罗在一起,以为保罗一定把他带进圣殿了。

30 消息一传开,全城轰动。众人冲进圣殿把保罗拉出来,随即关上殿门。 31 正当他们要杀保罗的时候,有人把耶路撒冷发生骚乱的消息报告给罗马军营的千夫长, 32 千夫长马上带着军兵和几个百夫长赶来了。众人一见千夫长和军队,便停止殴打保罗。 33 千夫长上前拿住保罗,命人用两条铁链把他锁起来,问他是什么人、做了什么事。 34 人群中有人这样喊,有人那样喊,情形混乱不堪,千夫长无法辨明真相,便命人将保罗带回军营。 35 保罗刚走上台阶,众人便凶猛地拥挤过来,士兵们只好把他举起来抬着走。 36 众人挤在后面喊着说:“杀掉他!”

保罗的申辩

37 士兵们抬着保罗来到军营门口,保罗问千夫长:“我可以和你讲几句话吗?”千夫长说:“你也懂希腊话吗? 38 不久前煽动叛乱、带着四千暴徒逃到旷野去的那个埃及人是你吗?” 39 保罗说:“我是犹太人,来自基利迦的大数,并非无名小城的人。请准许我向百姓讲几句话。” 40 千夫长答应了,保罗就站在台阶上向众人挥手示意,他们都安静下来,保罗用希伯来话对他们说: