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Bible in 90 Days

An intensive Bible reading plan that walks through the entire Bible in 90 days.
Duration: 88 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
व्यवस्था विवरण 23:12-34

12 “तुम्हें डेरे के बाहर शौच के लिए जगह बनानी चाहिए 13 और तुम्हें अपने हथियार के साथ खोदने के लिए एक खन्ती रखनी चाहिए। इसलिए जब तुम मलत्याग करो तब तुम एक गका खोदो और उसे ढक दो। 14 क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे डेरे में शत्रुओं को हराने में तुम्हारी सहायता करने के लिए तुम्हारे साथ है। इसलिए डेरा पवित्र रहना चाहिए। तब यहोवा तुम में कुछ भी घृणित नहीं देखेगा और तुम से आँखें नहीं फेरेगा।

विभिन्न नियम

15 “यदि कोई दास अपने मालिक के यहाँ से भागकर तुम्हारे पास आता है तो तुम्हें उस दास को उसके मालिक को नहीं लौटाना चाहिए। 16 यह दास तुम्हारे साथ जहाँ चाहे वहाँ रह सकता है। वह जिस भी नगर को चुने उसमें रह सकता है। तुम्हें उसे परेशान नहीं करना चाहिए।

17 “कोई इस्राएली स्त्री या पुरुष को कभी देवदासी या देवदास नहीं बनना चाहिए। 18 देवादस या देवदासी का कमाया हुआ धन यहोवा तुम्हारे परमेश्वर के मन्दिर में नहीं लाया जाना चाहिए। कोई व्यक्ति दिये गए वचन के कारण यहोवा को दी जाने वाली चीज के लिए इस धन का उपयोग नहीं कर सकता। यहोवा तुम्हारा परमेश्वर सभी मन्दिरों के देवदास—देवदासियों से घृणा करता है।

19 “यदि तुम किसी इस्राएली को कुछ उधार दो तो तुम उस पर ब्याज न लो। तुम सिक्कों, भोजन या कोई ऐसी चीज जिस पर ब्याज न लिया जा सेक व्याज न लो। 20 तुम विदेशी से ब्याज ले सकते हो। किन्तु तुम्हें दूसरे इस्राएली से ब्याज नहीं लेना चाहिए। यदि तुम इन नियमों का पालन करोगे तो यहोवा तुम्हारा परमेश्वर उस देश में, जहाँ तुम रहने जा रहे हो, जो कुछ तुम करोगे उसमें आशीष देगा।

21 “जब तुम यहोवा अपने परमेश्वर को वचन दो, तो जो तुम देने को कहो उन सबको देने में ढीले न पड़ो। यदि तुम वचन दी गई चिज़ों को नहीं दोगे तो पाप करोगे। 22 यदि तुम वचन नहीं देते हो तो तुम पाप नहीं कर रहे हो। 23 किन्तु तुम्हें वह चीज़ें करनी चाहिए जिसे करने के लिए तुमने कहा है कि तुम करोगे। जब तुम स्वतन्त्रता से यहोवा अपने परमेश्वर को वचन दो तो, तुम्हें वचन दी गई बात पूरी करनी चाहिए!

24 “यदि तुम दूसरे व्यक्ति के अंगूर के बाग से होकर जाते हो, तो तुम जितने चाहो उतने अंगूर खा सकते हो। किन्तु तुम कोई अंगूर अपनी टोकरी में नहीं रख सकते। 25 जब तुम दूसरे की पकी अन्न की फसल के खेत से होकर जा रहे हो तो तुम अपने हाथ से जितना उखाड़ा, खा सकते हो। किन्तु तुम हँसिये का उपयोग दूसरे के अन्न को काटने और लेने के लिए नहीं कर सकते।

24 “कोई व्यक्ति किसी स्त्री से विवाह करता है, और वह कुछ ऐसी गुप्त चीज उसके बारे में जान सकता है जिसे वह पसन्द नहीं करता। यदि वह व्यक्ति प्रसन्न नहीं है तो वह तलाक पत्रों को लिख सकता है और उन्हें स्त्री को दे सकता है। तब उसे अपने घर से उसको भेज देना चाहिए। जब उसने उसका घर छोड़ दिया है तो वह दूसरे व्यक्ति के पास जाकर उसकी पत्नी हो सकती है। 3-4 किन्तु मान लो कि नया पति भी उसे पसन्द नहीं करता और उसे विदा कर देता है। यदि वह व्यक्ति उसे तलाक देता है तो पहला पति उसे पत्नी के रूप में नहीं रख सकता या यदि नया पति मर जाता है तो पहला पति उसे फिर पत्नी के रूप में नहीं रख सकता। वह अपवित्र हो चुकी है। यदि वह फिर उससे विवाह करता है तो वह ऐसा काम करेगा जिससे यहोवा घृणा करता है। तुम्हें उस देश में ऐसा नहीं करना चाहिए जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें रहने के लिए दे रहा है।

“नवविवाहितों को सेना में नहीं भेजना चाहिए और उसे कोई अन्य विशेष काम भी नहीं देना चाहिए। क्योंकि एक वर्ष तक उसे घर पर रहने को स्वतन्त्र होना चाहिए और अपनी नयी पत्नी को सुखी बनाना चाहिए।

“यदि किसी व्यक्ति को तुम कर्ज दो तो गिरवी[a] के रूप में उसकी आटा पीसने की चक्की का कोई पाट न रखो। क्यों? क्योंकि ऐसा करना उसे भोजन से वंचित करना होगा।

“यदि कोई व्यक्ति अपने लोगों (इस्राएलियों) में से किसी का अपहरण करता हुआ पाया जाये और वह उसका उपयोग दास के रूप में करता हो या उसे बेचता हो तो वह अपहरण करने वाला अवश्य मारा जाना चाहिए। इस प्रकार तुम अपने बीच से इस बुराई को दूर करोगे।

“यदि तुम्हें कुष्ठ जैसी बीमारी हो जाये तो तुम्हें लेवीवंशी याजकों की दी हुई सारी शिक्षा स्वीकार करने में सावधान रहना चाहिए। तुम्हें सावधानी से उन सब आदेशों का पालन करना चाहिए जिन्हें देने के लिये मैंने याजकों से कहा है। यह याद रखो कि यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने मरियम के साथ क्या किया जब तुम मिस्र से बाहर निकलने की यात्रा पर थे।

10 “जब तुम किसी व्यक्ति को किसी प्रकार का कर्ज दो तो उसके घर में गिरवी रखी गई चीज़ लेने के लिए मत जाओ। 11 तुम्हें बाहर ही खड़ा रहना चाहिए। तब वह व्यक्ति, जिसे तुमने कर्ज दिया है, तुम्हारे पास गिरवी रखी गई चीज़ लाएगा। 12 यदि वह गरीब है तो वह अपने कपड़े को दे दे, जिससे वह अपने को गर्म रख सकता है। तुम्हें उसकी गिरवी रखी गई चीज़ रात को नहीं रखनी चाहिये। 13 तुम्हें प्रत्येक शाम को उसकी गिरवी रखी गई चीज़ लौटा देनी चाहिए। तब वह अपने वस्त्रों में सो सकेगा। वह तुम्हारा आभारी होगा और यहोवा तुम्हारा परमेश्वर यह देखेगा कि तुमने यह अच्छा काम किया।

14 “तुम्हें किसी मजदूरी पर रखे गए गरीब और जरूरतमन्द सेवक को धोखा नहीं देना चाहिए। इसका कोई महत्व नहीं कि वह तुम्हारा साथी इस्राएली है या वह कोई विदेशी है जो तुम्हारे नगरों में से किसी एक में रह रहा है। 15 सूरज डूबने से पहले प्रतिदिन उसकी मजदूरी दे दो। क्यों क्योंकि वह गरीब है और उसी धन पर आश्रित है। यदि तुम उसका भुगतान नहीं करते तो वह यहोवा से तुम्हारे विरुद्ध शिकायत करेगा और तुम पाप करने के अपराधी होगे।

16 “बच्चों द्वारा किये गए किसी अपराध के लिए पिता को मृत्यु दण्ड नहीं दिया जा सकता और बच्चे को पिता द्वारा किये गए अपराध के लिए मृत्यु दण्ड नहीं दिया जा सकता। किसी व्यक्ति को उसके स्वयं के अपराध के लिये ही मृत्यु दण्ड दिया जा सकता है।

17 “तुम्हें यह अच्छी तरह से देख लेना चाहिए कि विदेशियों और अनाथों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाए। तुम्हें विधवा से उसके वस्त्र कभी गिरवी रखने के लिए नहीं लेने चाहिए। 18 तुम्हें सदा याद रखना चाहिए कि तुम मिस्र में दास थे। यह मत भूलो कि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें वहाँ से बाहर लाया। यही कारण है कि मैं तुम्हें यह करने का आदेश देता हूँ।

19 “तुम अपने खेत की फसल इकट्ठी करते रह सकते हो और तुम कोई पूली भूल से वहाँ छोड़ सकते हो। तुम्हें उसे लेने नहीं जाना चाहिए। यह विदेशियों, अनाथों और विधवाओं के लिए होगा। यदि तुम उनके लिए कुछ अन्न छोड़ते हो तो यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें उन सभी कामों में आशीष देगा जो तुम करोगे। 20 जब तुम अपने जैतून के पेड़ों से फली झाड़ोगे तब तुम्हें शाखाओं की जाँच करने फिर नहीं जाना चाहिए। जो जैतून तुम उसमें छोड़ दोगे वह विदेशियों, अनाथों और विधवाओं के लिये होगा। 21 जब तुम अपने अंगूर के बागों से अंगूर इकट्ठा करो तब तुम्हें उन अंगूरों को लेने नहीं जाना चाहिए जिन्हें तुमने छोड़ दिया था। वे अंगूर विदेशियों, अनाथों और विधवाओं के लिये होंगे। 22 याद रखो कि तुम मिस्र में दास थे। यही कारण है कि मैं तुम्हें यह करने का आदेश दे रहा हूँ।

25 “यदि दो व्यक्तियों में झगड़ा हो तो उन्हें अदालत में जाना चाहिये। न्यायाधीश उनके मुकदमें का निर्णय करेंगे और बताएंगे कि कौन व्यक्ति सच्चा है तथा कौन अपराधी। यदि अपराधी व्यक्ति पीटे जाने योग्य है तो न्यायाधीश उसे मुँह के बल लेटाएगा। कोई व्यक्ति उसे न्यायाधीश की आँखों के सामने पीटेगा। वह व्यक्ति उतनी बार पीटा जाएगा जितनी बार के लिए उसका अपराध उपयुक्त होगा। कोई व्यक्ति चालीस बार तक पीटा जा सकता है, किन्तु उससे अधिक नहीं। यदि वह उससे अधिक बार पीटा जाता है तो इससे यह पता चलेगा कि उस व्यक्ति का जीवन तुम्हारे लिये महत्वपूर्ण नहीं।

“जब तुम अन्न को अलग करने के लिये पशुओं का उपयोग करो तब उन्हें खाने से रोकने के लिए उनके मुँह को न बाँधो।

“यदि दो भाई एक साथ रह रहे हों और उनमें एक पुत्रहीन मर जाए तो मृत भाई की पत्नी का विवाह परिवार के बाहर के किसी अजनबी के साथ नहीं होना चाहिए। उसके पति के भाई को उसके प्रति पति के भाई का कर्तव्य पूरा करना चाहिए। तब जो पहलौठा पुत्र उससे उत्पन्न होगा वह व्यक्ति के मृत भाई का स्थान लेगा। तब मृत—भाई का नाम इस्राएल से बाहर नहीं किया जाएगा। यदि वह व्यक्ति अपने भाई की पत्नी को ग्रहण करना नहीं चाहता, तब भाई की पत्नी को बैठकवाली जगह पर नगर—प्रमुखों के पास जाना चाहिए। उसके भाई की पत्नी को नगर प्रमुखों से कहना चाहिए, ‘मेरे पति का भाई इस्राएल में अपने भाई का नाम बनाए रखने से इन्कार करता है। वह मेरे प्रति अपने भाई के कर्तव्य को पूरा नहीं करेगा।’ तब नगर—प्रमुखों को उस व्यक्ति को बुलाना और उससे बात करनी चाहिए। यदि वह व्यक्ति हठी है और कहता है, ‘मैं उसे नहीं ग्रहण करना चाहता।’ तब उसके भाई की पत्नी नगर प्रमुखों के सामने उसके पास आए। वह उसके पैर से उसके जूते निकाल ले और उसके मुँह पर थूके। उसे कहना चाहिए, ‘यह उस व्यक्ति के साथ किया जाता है जो अपने भाई का परिवार नहीं बसाएगा।’ 10 तब उस भाई का परिवार, इस्राएल में, ‘उस व्यक्ति का परिवार कहा जाएगा जिसने अपने जूते उतार दिये।’

11 “दो व्यक्ति परस्पर झगड़ा कर सकते हैं। उनमें एक की पत्नी अपने पति की सहायता करने आ सकती है। किन्तु उसे दूसरे व्यक्ति के गुप्त अंगों को नहीं पकड़ना चाहिए। 12 यदि वह ऐसा करती है तो उसके हाथ काट डालो, उसके लिये दु:खी मत होओ।

13 “लोगों को धोखा देने के लिये जाली बाट न रखो। उन बाटों का उपयोग न करो जो असली वजन से बहुत कम या बहुत ज्यादा हो। 14 अपने घर में उन मापों को न रखो जो सही माप से बहुत बड़े या बहुत छोटे हों। 15 तुम्हें उन बाटों और मापों का उपयोग करना चाहिए जो सही और ईमानदारी के परिचायक हैं। तुम उस देश में लम्बी आयु वाले होगे जिसे यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर तुमको दे रहा है। 16 यहोवा तुम्हारा परमेश्वर उनसे घृणा करता है जो जाली बाट और माप का उपयोग करके धोखा देते हैं। हाँ, वह उन सभी लोगों से घृणा करता है जो बेईमानी करते हैं।

अमालेक के लोगों को नष्ट कर देना चाहिए

17 “याद रखो कि जब तुम मिस्र से आ रहे थे तब अमालेक के लोगों ने तुम्हारे साथ क्या किया। 18 अमालेक के लोगों ने परमेश्वर का सम्मान नहीं किया था। उन्होंने तुम पर तब आक्रमण किया जब तुम थके हुए और कमजोर थे। उन्होंने तुम्हारे उन सब लोगों को मार डाला जो पीछे चल रहे थे। 19 इसलिए तुम लोगों को अमालेक के लोगों की याद को संसार से मिटा देना चाहिए। यह तुम लोग तब करोगे जब उस देश में जाओगे जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें दे रहा है। वहाँ वह तुम्हें तुम्हारे चारों ओर के शत्रुओं से छुटकारा दिलाएगा। किन्तु अमालेकियों को नष्ट करना मत भूलो!

प्रथम फसल के बारे में नियम

26 “तुम शीघ्र ही उस देश में प्रवेश करोगे जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें रहने के लिये दे रहा है। जब तुम वहाँ अपने घर बना लो तब तुम्हें अपनी थोड़ी सी प्रथम फसल लेनी चाहिए और उसे एक टोकरी में रखना चाहिये। वह प्रथम फसल होगी जिसे तुम उस देश से पाओगे जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें दे रहा है। थोड़ी प्रथम फसल वाली टोकरी को लो और उस स्थान पर जाओ जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर चुनेगा। उस समय सेवा करने वाले याजक के पास तुम जाओगे। तुम्हें उससे कहना चाहिए, ‘आज मैं यहोवा अपने परमेश्वर के सामने यह घोषित करता हूँ कि हम उस देश में आ गए हैं जिसे यहोवा ने हम लोगों को देने के लिये हमारे पूर्वजों को वचन दिया था।’

“तब याजक टोकरी को तुम्हारे हाथ से लेगा। वह इसे यहोवा तुम्हारे परमेश्वर की वेदी के सामने रखेगा। तब तुम यहोवा अपने परमेश्वर के सामने यह कहोगे: मेरा पूर्वज घुमक्कड़ अरामी था। वह मिस्र पहुँचा और वहाँ रहा। जब वह वहाँ गया तब उसके परिवार में बहुत कम लोग थे। किन्तु मिस्र में वह एक शक्तिशाली बहुत से व्यक्तियों वाला महान राष्ट्र बन गया। मिस्रियों ने हम लोगों के साथ बुरा व्यवहार किया। तब हम लोगों ने यहोवा अपने पूर्वजों के परमेश्वर से प्रार्थना की और उसके बारे में शिकायत की। यहोवा ने हमारी सुनी उसने हम लोगों की परेशानियाँ, हमारे कठोर कार्य और कष्ट देखे। तब यहोवा हम लोगों को अपनी प्रबल शक्ति और दृढ़ता से मिस्र से बाहर लाया। उसने महान चमत्कारों और आश्चर्यों का उपयोग किया। उसने भंयकर घटनाएँ घटित होने दीं। इस प्रकार वह हम लोगों को इस स्थान पर लाया। उसने अच्छी चीजों से भरा—पुरा[b] देश हमें दिया। 10 यहोवा, अब मैं उस देश की प्रथम फसल तेरे पास लाया हूँ जिसे तूने हमें दिया है।

“तब तुम्हें फसल को यहोवा अपने परमेश्वर के सामने रखना चाहिए और तुम्हें उसकी उपासना करनी चाहिए। 11 तब तुम उन सभी चीज़ों का आनन्द से उपभोग कर सकते हो जिसे यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हें और तुम्हारे परिवार को दिया है। लेवीवंशी और वे विदेशी जो तुम्हारे बीच रहते हैं तुम्हारे साथ इन चीजों का आनन्द ले सकते हैं।

12 “जब तुम सारा दशमांश जो तीसरे वर्ष (दशमांश का वर्ष) तुम्हारी फ़सल का दिया जाना है, दे चुको तब तुम्हें लेवीवंशियों, विदेशियों, अनाथों और विधवाओं को इसे देना चाहिए। तब हर एक नगर में वे खा सकते हैं और सन्तुष्ट किये जा सकते हैं। 13 तुम यहोवा अपने परमेश्वर से कहोगे, ‘मैंने अपने घर से अपनी फसल का पवित्र भाग दशमांश बाहर निकाल दिया है। मैंने इसे उन सभी लेवीवंशियों, विदेशियों, अनाथों और विधवाओं को दे दिया है। मैंने उन सभी आदेशों का पालन करने से इन्कार नहीं किया है। मैं उन्हें भूला नहीं हूँ। 14 मैंने यह भोजन तब नहीं किया जब मैं शोक मना रहा था। मैंने इस अन्न को तब अलग नहीं किया जब मैं अपवित्र था। मैंने इस अन्न में से कोई भाग मरे व्यक्ति के लिये नहीं दिया है। मैंने यहोवा, मेरे परमेश्वर, तेरी आज्ञाओं का पालन किया है। मैंने वह सब कुछ किया है जिसके लिये तूने आदेश दिया है। 15 तू अपने पवित्र आवास स्वर्ग से नीचे निगाह डाल और अपने लोगों, इस्राएलियों को आशीर्वाद दे और तू उस देश को आशीर्वाद दे जिसे तूने हम लोगों को वैसा ही दिया है जैसा तूने हमारे पूर्वजों को अच्छी चीज़ों से भरा—पुरा देश देने का वचन दिया था।’

यहोवा के आदेशों पर चलो

16 “आज यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुमको आदेश देता है कि तुम इन सभी विधियों और नियमों का पालन करो। अपने पूरे हृदय और अपनी पूरी आत्मा से इनका पालन करने के लिये सावधान रहो। 17 आज तुमने यह कहा है कि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर है। तुम लोगों ने वचन दिया है तुम उसके मार्ग पर चलोगे, उसके उपदेशों को मानोगे, और उसके नियमों और आदेशों को मानोगे। तुमने कहा है कि तुम वह सब कुछ करोगे जिसे करने के लिये वह कहता है। 18 आज योहवा ने तुम्हें अपने लोग चुन लिया और अपना मूल्यवान आश्रय प्रदान करने का वचन भी दिया है। यहोवा ने यह कहा है कि तुम्हें उसके सभी आदेशों का पालन करना चाहिए। 19 यहोवा तुम्हें उन सभी राष्ट्रों से महान बनाएगा जिन्हें उसने बनाया है। वह तुमको प्रशंसा, यश और गौरव देगा और तुम उसके विशेष लोग होगे, जैसा उसने वचन दिया है।”

नियम पत्थरों पर लिखे जाने चाहिए

27 मूसा ने इस्राएल के प्रमुखों के साथ लोगों को आदेश दिया। उसने कहा, “उन सभी आदेशों का पालन करो जिन्हें मैं तुम्हें आज दे रहा हूँ। जिस दिन तुम यरदन नदी पार करके उस देश में प्रवेश करो जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें दे रहा है उस दिन, विशाल शिलायें तैयार करो। इन शिलाओं को चूने के लेप से ढक दो। तब इन नियमों की सारी बातें इन पत्थरों पर लिख दो। तुम्हें यह तब करना चाहिये जब तुम यरदन नदी के पार पहुँच जाओ। तब तुम उस देश में जा सकोगे जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें अच्छी चीजों से भरा—पूरा दे रहा है। यहोवा तुम्हारे पूर्वजों के परमेश्वर ने इसे देकर अपने वचन को पूरा किया है।

“यरदन नदी के पार जाने के बाद तुम्हें इन शिलाओं को एबाल पर्वत पर आज के मेरे आदेश के अनुसार स्थापित करना चाहिए। तुम्हें इन पत्थरों को चूने के लेप से ढक देना चाहिए। वहाँ पर यहोवा अपने परमेश्वर की वेदी बनाने के लिये भी कुछ शिलाओं का उपयोग करो। पत्थरों को काटने के लिये लोहे के औजारों का उपयोग मत करो। जब तुम यहोवा अपने परमेश्वर के लिये वेदी पर होमबलि चढ़ाओ। और तुम्हें वहाँ मेलबलि के रूप में बलि देनी चाहिए और उन्हें खाना चाहिए। खाओ और यहोवा अपने परमेश्वर के साथ उल्लास का समय बिताओ। तुम्हें इन सारे नियमों को अपनी स्थापित की गई शिलाओं पर साफ—साफ लिखवाना चाहिए।”

नियम के अभिशाप

मूसा ने लेवीवंशी याजकों के साथ इस्राएल के सभी लोगों से बात की। उसने कहा, “इस्राएलियों, शान्त रहो और सुनो! आज तुम लोग, यहोवा अपने परमेश्वर के लोग हो गए हो। 10 इसलिए तुमहें वह सब कुछ करना चाहिए जो यहोवा तुम्हारा परमेश्वर कहता है। तुम्हें उसके उन आदेशों और नियमों का पालन करना चाहिए जिन्हें मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ।”

11 उसी दिन, मूसा ने लोगों से कहा, 12 “जब तुम यरदन नदी के पार जाओगे उसके बाद ये परिवार समूह गिरिज्जीम पर्वत पर खडे होकर लोगों को आशीर्वाद देंगे शिमोन, लेवी, यहुदा, इस्साकार, यूसुफ और विन्यामीन। 13 और ये परिवार समूह एबाल पर्वत पर से अभिशाप पढ़ेंगेः रूबेन, गाद, आशेर, जबूलून, दान और नप्ताली।

14 “और लेवीवंशी इस्राएल के सभी लोगों से तेज स्वर में कहेंगेः

15 “‘वह व्यक्ति अभिशप्त है जो असत्य देवता बनाता है और उसे अपने गुप्त स्थान में रखता है। असत्य देवता केवल वे मूर्तियाँ हैं जिसे कोई कारीगर लकड़ी, पत्थर या धातु की बनाता है। यहोवा उन चीजों से घृणा करता है!’

“तब सभी लोग उत्तर देंगे, ‘आमीन!’

16 “लेवीवंशी कहेंगे, ‘वह व्यक्ति अभिशप्त है जो ऐसा कार्य करता है जिससे पता चलता है कि वह अपने माता—पिता का अपमान करता है!’

“तब सभी लोग उत्तर देंगे, ‘आमीन!’

17 “लेवीवंशी कहेंगे, ‘वह व्यक्ति अभिशप्त है जो अपने पड़ोसी के सीमा चिन्ह को हटाता है!’

“तब सभी लोग कहेंगे, ‘आमीन!’

18 “लेवीवंशी कहेंगे, ‘वह व्यक्ति अभिशप्त है जो अन्धे को कुमार्ग पर चलाता है!’

“तब सभी लोग कहेंगे, ‘आमीन!’

19 “लेवीवंशी कहेंगे, ‘वह व्यक्ति अभिशप्त है जो विदेशियों, अनाथों और विधवाओं के साथ न्याय नहीं करता!’

“तब सभी लोग कहेंगे, ‘आमीन!’

20 “लेवीवंशी कहेंगेः ‘वह व्यक्ति अभिशप्त है जो अपने पिता की पत्नी के साथ शारीरिक सम्बन्ध रखता है क्योंकि वह अपने पिता को नंगा सा करता है!’

“तब सभी लोग कहेंगे, ‘आमीन!’

21 “लेवीवंशी कहेंगे: ‘वह व्यक्ति अभिश्प्त है जो किसी प्रकार के जानवर के साथ शारीरिक सम्पर्क करता है!’

“तब सभी लगो कहेंगे, ‘आमीन!’

22 “लेवीवंशी कहेंगे: ‘वह व्यक्ति अभिशप्त है जो अपनी माता या अपने पिता की पुत्री, अपनी बहन के साथ शारीरिक सम्पर्क रखता है!’

“तब सभी लोग कहेंगे, ‘आमीन!’

23 “लेवीवंशी कहेंगेः ‘वह व्यक्ति अभिशप्त है जो अपनी सास के साथ शारिरिक सम्पर्क रखता है!’

“तब सभी लोग कहेंगे, ‘आमीन!’

24 “लेवीवंशी कहेंगे: ‘वह व्यक्ति अभिशप्त है जो दूसरे व्यक्ति की गुप्त रूप से हत्या करता है!’

“तब सभी लोग कहेंगे, ‘आमीन!’

25 “लेवीवंशी कहेंगे: ‘वह व्यक्ति अभिशप्त है जो निर्दोष की हत्या के लिये धन लेता है!’

“तब सभी कहेंगे, ‘आमीन!’

26 “लेवीवंशी कहेंगे: ‘वह व्यक्ति अभिशप्त है जो इन नियमों का समर्थन नहीं करता और पालन करना स्वीकार नहीं करता!’

“तब सभी लोग कहेंगे, ‘आमीन!’

आशीर्वाद

28 “यदि तुम यहोवा अपने परमेश्वर के इन आदेशों के पालन में सावधान रहोगे जिन्हें मैं आज तुम्हें बता रहा हूँ तो योहवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें पृथ्वी के सभी राष्ट्रों के ऊपर श्रेष्ठ करेगा। यदि तुम यहोवा अपने परमेश्वर के आदेशों का पालन करोगे तो ये वरदान तुम्हारे पास आएंगे और तुम्हारे होंगे:

“यहोवा तुम्हारे नगरों और खेतों को
    आशीष प्रदान करेगा।
यहोवा तुम्हारे बच्चों को
    आशीर्वाद देगा।
वह तुम्हारी भूमि को
    अच्छी फसल का वरदानदेगा और
वह तुम्हारे जानवरों को
    बच्चे देने का वरदान देगा।
    तुम्हारे पास बहुत से मवेशी और भेड़ें होंगी।
यहोवा तुम्हें अच्छे अन्न की फसल
    और बहुत अधिक भोजन पाने का आशीर्वाद देगा।
यहोवा तुम्हें तुम्हारे आगमन और प्रस्थान पर आशीर्वाद देगा।

“यहोवा तुम्हें उन शत्रुओं पर विजयी बनाएगा जो तुम्हारे विरुद्ध होंगे। तुम्हारे शत्रु तुम्हारे विरुद्ध एक रास्ते से आएंगे किन्तु वे तुम्हारे सामने सात मार्गों में भाग खड़ें होंगे।

“यहोवा तुम्हें भरे कृषि—भंडार का आशीर्वाद देगा। तुम जो कुछ करोगे वह उसके लिये आशीर्वाद देगा जिसे वह तुमको दे रहा है। यहोवा तुम्हें अपने विशेष लोग बनाएगा। यहोवा ने तुम्हें यह वचन दिया है बशर्ते कि तुम यहोवा अपने परमेश्वर के आदेशों का पालन करो और उसके मार्ग पर चलो। 10 तब पृथ्वी के सभी लोग देखेंगे कि तुम यहोवा के नाम से जाने जाते हो और वे तुमसे भयभीत होंगे।

11 “और यहोवा तुम्हें बहुत सी अच्छी चीजें देगा। वह तुम्हें बहुत से बच्चे देगा। वह तुम्हें मवेशी और बहुत से बछड़े देगा। वह उस देश में तुम्हें बहुत अच्छी फसल देगा जिसे उन्होंने तुम्हारे पूर्वजों को देने का वचन दिया था।

12 “यहोवा अपने भण्डार खोल देगा जिनमें वह अपना कीमती वरदान रखता है तथा तुम्हारी भूमि के लिये ठीक समय पर वर्षा देगा। यहोवा जो कुछ भी तुम करोगे उसके लिए आशीर्वाद देगा और बहुत से राष्ट्रों को कर्ज देने के लिए तुम्हारे पास धन होगा। किन्तु तुम्हें उनसे कुछ उधार लेने की आवश्यकता नहीं होगी। 13 यहोवा तुम्हें सिर बनाएगा, पूँछ नहीं। तुम चोटी पर होगे, तलहटी पर नहीं। यह तब होगा जह तुम यहोवा अपने परमेश्वर के उन आदेशों पर ध्यान दोगे जिन्हें मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ। 14 तुम्हें उन शिक्षाओं में से किसी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये जिन्हें मैं आज तुम्हें दे रहा हूँ। तुम्हें इनसे दाँयी या बाँयी ओर नहीं जाना चाहिए। तुम्हें उपासना के लिये अन्य देवताओं का अनुसरण नहीं करना चाहिए।

अभिशाप

15 “किन्तु यदि तुम यहोवा अपने परमेश्वर द्वारा कही गई बातों पर ध्यान नहीं देते और आज मैं जिन आदेशों और नियमों को बता रहा हूँ, पालन नहीं करते तो ये सभी अभिशाप तुम पर आयेंगेः

16 “यहोवा तुम्हारे नगरों और गाँवों को
    अभिशाप देगा।
17 यहोवा तुम्हारी टोकरियों व बर्तनों को अभिशाप देगा
    और तुम्हें पर्याप्त भोजन नहीं मिलेगा।
18 तुम्हारे बच्चे
    अभिशप्त होंगे।
तुम्हारी भूमि की फसलें
    तुम्हारे मवेशियों के बछड़े
और तुम्हारी रेवड़ों के मेमनें
    अभिशप्त होंगे।
19 तुम्हारा आगमन और प्रस्थान अभिशप्त होगा।

20 “यदि तुम बुरे काम करोगे और अपने यहोवा से मुँह फेरोगे, तो तुम अभिशप्त होगे। तुम जो कुछ करोगे उसमें तुम्हें अव्यवस्था और फटकार का समाना करना होगा। वह यह तब तक करेगा जब तक तुम शीघ्रता से और पूरी तरह से नष्ट नहीं हो जाते। 21 यदि तुम यहोवा की आज्ञा नहीं मानते तो वह तुम्हें तब तक महामारी से पीड़ित करत रहेगा जब तक तुम उस देश में पूरी तरह नष्ट नहीं हो जाते जिसमें तुम रहने के लिये प्रवेश कर रहे हो। 22 यहोवा तुम्हें रोग से पीड़ित और दुर्बल होने का दण्ड देगा। तुम्हें ज्वर और सूजन होगी। यहोवा तुम्हारे पास भंयकर गर्मी भेजेगा और तुम्हारे यहाँ वर्षा नहीं होगी। तुम्हारी फसलें गर्मी या रोग से नष्ट हो जाएंगी। तुम पर ये आपत्तियाँ तब तक आएंगी जब तक तुम मर नहीं जाते! 23 आकाश में कोई बादल नहीं रहेगा और आकाश काँसा जैसा होगा। और तुम्हारे नीचे पृथ्वी लोहे की तरह होगी। 24 वर्षा के बदले यहोवा तुम्हारे पास आकाश से रेत और धूलि भेजेगा। यह तुम पर तब तक आयेगी जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाते।

25 “यहोवा तुम्हारे शत्रुओं द्वारा तुम्हें पराजित करायेगा। तुम अपने शत्रुओं के विरुद्ध एक रास्ते से जाओगे और उनके सामने से सात मार्ग से भागोगे। तुम्हारे ऊपर जो आपत्तियाँ आएँगी वे सारी पृथ्वी के लोगों को भयभीत करेंगी। 26 तुम्हारे शव सभी जंगली जानवरों और पक्षियों का भोजन बनेंगे। कोई व्यक्ति उन्हें डराकर तुम्हारी लाशों से भगाने वाला न होगा।

27 “यदि तुम यहोवा की आज्ञा का पालन नहीं करते तो वह तुम्हें वैसे फोड़े होने का दण्ड देगा जैसे फोड़े उसने मिस्रियों पर भेजे थे। वह तुम्हें भयंकर फोड़ों और खुजली से पीड़ित करेगा। 28 यहोवा तुम्हें पागल बना कर दण्ड देगा। वह तुम्हें अन्धा और कुण्ठित बनाएगा। 29 तुम्हें दिन के प्रकाश में अन्धे की तरह अपना रास्ता टटोलना पड़ेगा। तुम जो कुछ करोगे उसमें तुम असफल रहोगे। लोग तुम पर बार—बार प्रहार करेंगे और तुम्हारी चीजें चुराएंगे। तुम्हें बचाने वाला वहाँ कोई भी न होगा।

30 “तुम्हारा विवाह किसी स्त्री के साथ पक्का हो सकता है, किन्तु दूसरा व्यक्ति उसके साथ सोयेगा। तुम कोई घर बना सकते हो, किन्तु तुम उसमें रहोगे नहीं। तुम अंगूर का बाग लगा सकते हो, किन्तु इससे कुछ भी इकट्ठा नहीं कर सकते। 31 तुम्हारा बैल तुम्हारी आँखों के सामने मारा जाएगा किन्तु तुम उसका कुछ भी माँस नहीं खा सकते। तुम्हारा गधा तुमसे बलपूर्वक छीन कर ले जाया जाएगा यह तुम्हें लौटाया नहीं जाएगा। तुम्हारी भेड़ें तुम्हारे शत्रुओं को दे दी जाएँगी। तुम्हारा रक्षक कोई व्यक्ति नहीं होगा।

32 “तुम्हारे पुत्र और तुम्हारी पुत्रियाँ दूसरी जाति के लोगों को दे दी जाएँगी। तुम्हारी आँखे सारे दिन बच्चों को देखने के लिये टकटकी लगाए रहेंगी क्योंकि तुम बच्चों को देखना चाहोगे। किन्तु तुम प्रतीक्षा करते—करते कमजोर हो जाओगे, तुम असहाय हो जाओगे।

33 “वह राष्ट्र जिसे तुम नहीं जानते, तुम्हारे पसीने की कमाई की सारी फसल खाएगा। तुम सदैव परेशान रहोगे। तुम सदैव छिन्न—भिन्न होगे। 34 तुम्हारी आँखें वह देखेंगी जिससे तुम पागल हो जाओगे। 35 यहोवा तुम्हें दर्द वाले फोड़ों का दण्ड देगा। ये फोड़े तुम्हारे घुटनों और पैरों पर होंगे। वे तुम्हारे तलवे से लेकर सिर के ऊपर तक फैल जाएंगे और तुम्हारे ये फोड़े भरेंगे नहीं।

36 “यहोवा तुम्हें और तुम्हारे राजा को ऐसे राष्ट्र में भेजेगा जिसे तुम नहीं जानते होगे। तुमने और तुम्हारे पूर्वजों ने उस राष्ट्र को कभी नहीं देखा होगा। वहाँ तुम लकड़ी और पत्थर के बने अन्य देवताओं को पूजोगे। 37 जिन देशों में यहोवा तुम्हें भेजेगा उन देशों के लोग तुम लोगों पर आई विपत्तियों को सुनकर स्तब्ध रह जाएंगे। वे तुम्हारी हँसी उड़ायेंगे और तुम्हारी निन्दा करेंगे।

असफलता का अभिशाप

38 “तुम अपने खेतों में बोने के लिये आवश्यकता से बहुत अधिक बीज ले जाओगे। किन्तु तुम्हारी उपज कम होगी। क्यों? क्योंकि टिड्डयाँ तुम्हारी फसलें खा जाएंगी। 39 तुम अंगूर के बाग लगाओगे और उनमें कड़ा परिश्रम करोगे। किन्तु तुम उनमें से अंगूर इकट्ठे नहीं करोगे और न ही उन से दाखमधु पीओगे। क्यों? क्योंकि उन्हें कीड़े खा जाएंगे। 40 तुम्हारी सारी भूमि में जैतून के पेड़ होंगे। किन्तु तुम उसके कुछ भी तेल का उपयोग नहीं कर सकोगे। क्यों? क्योंकि तुम्हारे जैतून के पेड़ अपने फलों को नष्ट होने के लिये गिरा देंगे। 41 तुम्हारे पुत्र और तुम्हारी पुत्रियाँ होंगी, किन्तु तुम उन्हें अपने पास नहीं रख सकोगे। क्यों? क्योंकि वे पकड़कर दूर ले जाए जाएंगे। 42 टिड्डियाँ तुम्हारे पेड़ों और खेतों की फसलों को नष्ट कर देंगी। 43 तुम्हारे बीच रहने वाले विदेशी अधिक से अधिक शक्ति बढ़ाते जाएँगे और तुममें जों भी तुम्हारी शक्ति है उसे खोते जाओगे। 44 विदेशियों के पास तुम्हें उधार देने योग्य धन होगा लेकिन तुम्हारे पास उन्हें उधार देने योग धन नहीं होगा। वे तुम्हारा वैसा ही नियन्त्रण करेंगे जैसा मस्तिष्क शरीर का करता है। तुम पूँछ के समान बन जाओगे।

45 “ये सारे अभिशाप तुम पर पड़ेंगे। वे तुम्हारा पीछा तब तक करते रहेंगे और तुमको ग्रसित करते रहेंगे जब तक तुम नष्ट हो जाते। क्यों? क्योंकि तुमने यहोवा अपने परमेश्वर की कही हुई बातों की परवाह नहीं की। तुमने उसके उन आदेशों और नियमों का पालन नहीं किया जिसे उसने तुम्हें दिया। 46 ये अभिशाप लोगों को बताएंगे कि परमेश्वर ने तुम्हारे वंशजों के साथ सदैव न्याय किया है। ये अभिशाप संकेत और चेतावनी के रूप में तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को हमेशा याद रहेंगे।

47 “यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हें बहुत से वरदान दिये। किन्तु तुमने उसकी सेवा प्रसन्नता और उल्लास भरे हृदय से नहीं की। 48 इसलिए तुम अपने उन शत्रुओं की सेवा करोगे जिन्हें यहोवा, तुम्हारे विरुद्ध भेजेगा। तुम भूखे, प्यासे और नंगे रहोगे। तुम्हारे पास कुछ भी न होगा। यहोवा तुम्हारी गर्दन पर एक लोहे का जुवा तब तक रखेगा जब तक वह तुम्हें नष्ट नहीं कर देता।

शत्रु राष्ट्र का अभिशाप

49 “यहोवा तुम्हारे विरुद्ध बहुत दूर से एक राष्ट्र को लाएगा। यह राष्ट्र पृथ्वी की दूसरी ओर से आएगा। यह राष्ट्र तुम्हारे ऊपर आकाश से उतरते उकाब की तरह शीघ्रता से आक्रमण करेगा। तुम इस राष्ट्र की भाषा नहीं समझोगे। 50 इस राष्ट्र के लोगों के चेहरे कठोर होंगे। वे बूढ़े लोगों की भी परवाह नहीं करेंगे। वे छोटे बच्चों पर भी दयालु नहीं होंगे। 51 वे तुम्हारे मवेशियों के बछड़े और तुम्हारी भूमि की फसल तब तक खायेंगे जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाओगे। वे तुम्हारे लिये अन्न, नयी दाखमधु, तेल तुम्हारे मवेशियों के बछड़े अथवा तुम्हारे रेवड़ों के मेमने नहीं छोड़ेंगे। वे यह तब तक करते रहेंगे जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाओगे।

52 “यह राष्ट्र तुम्हारे सभी नगरों को घेर लेगा। तुम अपने नगरों के चारों ओर ऊँची और दृढ़ दीवारों पर भरोसा रखते हो। किन्तु तुम्हारे देश में ये दीवारें सर्वत्र गिर जाएंगी। हाँ, वह राष्ट्र तुम्हारे उस देश के सभी नगरों पर आक्रमण करेगा जिसे यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें दे रहा है। 53 जब तक तुम्हारा शत्रु तुम्हारे नगर का घेरा डाले रहेगा तब तक तुम्हारी बड़ी हानि होगी। तुम इतने भूखे होगे कि अपने बच्चों को भी खा जाओगे। तुम अपने पुत्र और पुत्रियों का माँस खाओगे जिन्हें यहोवा तुम्हारे परमेश्वर ने तुम्हे दिया है।

54 “तुम्हारा बहुत विनम्र सज्जन पुरुष भी अपने बच्चों, भाईयों, अपनी प्रिय पत्नी तथा बचे हुए बच्चों के साथ बहुत क्रूरता का बर्ताव करेगा। 55 उसके पास कुछ भी खाने को नहीं होगा क्योंकि तुम्हारे नगरों के विरूद्ध आने वाले शत्रु इतनी अधिक हानि पहुँचा देंगे। इसलिए वह अपने बच्चों को खायेगा। किन्तु वह अपने परिवार के शेष लोगों को कुछ भी नहीं देगा!

56 “तुम्हारे बीच सबसे अधिक विनम्र और कोमल स्त्री भी वही करेगी। ऐसी सम्पन्न और कोमल स्त्री भी जिसने कहीं जाने के लिये जमीन पर कभी पैर भी न रखा हो। वह अपने प्रिय पति या अपने पुत्र—पुत्रियों के साथ हिस्सा बँटाने से इन्कार करेगी। 57 वह अपने ही गर्भ की झिल्ली[c] को खायेगी और उस बच्चे को भी जिसे वह जन्म देगी। वह उन्हें गुप्त रूप से खायेगी। क्यों? क्योंकि वहाँ कोई भी भोजन नहीं बचा है। यह तब होगा जब तुम्हारा शत्रु तुम्हारे नगरों के विरुद्ध आयेगा और बहुत अधिक कष्ट पहुँचायेगा।

58 “इस पुस्तक में जितने आदेश और नियम लिखे गए हैं उन सबका पालन तुम्हें करना चाहिए और तुम्हें यहोवा अपने परमेश्वर के आश्चर्य और आतंक उत्पन्न करने वाले नाम का सम्मान करना चाहिए। यदि तुम इनका पालन नहीं करते 59 तो यहोवा तुम्हें भयंकर आपत्ति में डालेगा और तुम्हारे वंशज बड़ी परेशानियाँ उठायेंगे और उन्हें भयंकर रोग होंगे जो लम्बे समय तक रहेंगे 60 और यहोवा मिस्र से वे सभी बीमारियाँ लाएगा जिनसे तुम डरते हो। ये बीमारियाँ तुम लोगों में रहेंगी। 61 यहोवा उन बीमारियों और परेशानियों को भी तुम्हारे बीच लाएगा जो इस व्यवस्था की किताब में नहीं लिखी गई हैं। वह यह तब तक करता रहेगा जब तक तुम नष्ट नहीं हो जाते। 62 तुम इतने अधिक हो सकते हो जितने आकाश में तारे हैं। किन्तु तुममें से कुछ ही बचे रहेंगे। तुम्हारे साथ यह क्यों होगा? क्योंकि तुमने यहोवा अपने परमेश्वर की बात नहीं मानी।

63 “पहले यहोवा तुम्हारी भलाई करने और तुम्हारे राष्ट्र को बढ़ाने में प्रसन्न था। उसी तरह यहोवा तुम्हें नष्ट और बरबाद करने में प्रसन्न होगा। तुम उस देश से बाहर ले जाए जाओगे जिसे तुम अपना बनाने के लिये उसमें प्रवेश कर रहे हो। 64 यहोवा तुम्हें पृथ्वी के एक छोर से दूसरी छोर तक संसार के सभी लोगों मे बिखेर देगा। वहाँ तुम दूसरे लकड़ी और पत्थर के देवताओं को पूजोगे जिन्हें तुमने या तुम्हारे पूर्वजों ने कभी नहीं पूजा।

65 “तुम्हें इन राष्ट्रों के बीच तनिक भी शान्ति नहीं मिलेगी। तुम्हें आराम की कोई जगह नहीं मिलेगी। यहोवा तुम्हारे मस्तिष्क को चिन्ताओं से भर देगा। तुम्हारी आँखें पथरा जाएंगी। तुम अपने को ऊखड़ा हुआ अनुभव करोगे। 66 तुम संकट में रहोगे। तुम दिन—रात भयभीत रहोगे। सदैव सन्देह में पड़े रहोगे। तुम अपने जीवन के बारे में कभी निश्चिन्त नहीं रहोगे। 67 सवेरे तुम कहोगे, ‘अच्छा होता, यह शाम होती!’ शाम को तुम कहोगे, ‘अच्छा होता, यह सवेरा होता!’ क्यों? क्योंकि उस भय के कारण जो तुम्हारे हृदय में होगा और उन आपत्तियों के कारण जो तुम देखोगे। 68 यहोवा तुम्हें जहाजों में मिस्र वापस भेजेगा। मैंने यह कहा कि तुम उस स्थान पर दुबारा कभी नहीं जाओगे। किन्तु यहोवा तुम्हें वहाँ भेजेगा। और वहाँ तुम अपने को अपने शत्रुओं के हाथ दास के रूप में बेचने की कोशिश करोगे, किन्तु कोई व्यक्ति तुम्हें खरीदेगा नहीं।”

मोआब में वाचा

29 ये बातें उस वाचा का अंग हैं जिस वाचा को यहोवा ने मोआब प्रदेश मे इस्राएल के लोगों के साथ मूसा से करने को कहा। यहोवा ने इस वाचा को उस साक्षीपत्र से अतिरिक्त किया जिसे उसने इस्राएल के लोगों के साथ होरेब (सीनै) पर्वत पर किया था।

मूसा ने सभी इस्राएली लोगों को इकट्ठा बुलाया। उसने उनसे कहा, “तुमने वह सब कुछ देखा जो याहोवा ने मिस्र देश में किया। तुमने वह सब भी देखा जो उसने फिरौन, फिरौन के प्रमुखों और उसके पूरे देश के साथ किया। तुमने उन बड़ी मुसीबतों को देखा जो उसने उन्हें दीं। तुमने उसके उन चमत्कारों और बड़े आश्चर्यों को देखा जो उसने किये। किन्तु आज भी तुम नहीं समझते कि क्या हुआ। यहोवा ने सचमुच तुमको नहीं समझाया जो तुमने देखा और सुना। यहोवा तुम्हें चालीस वर्ष तक मरुभूमि से होकर ले जाता रहा और उस लम्बे समय के बीच तुम्हारे वस्त्र और जूते फटकर खत्म नहीं हुए। तुम्हारे पास कुछ भी भोजन नहीं था। तुम्हारे पास कुछ भी दाखमधु या कोई अन्य पीने की चीज़ नहीं थी। किन्तु यहोवा ने तुम्हारी देखभाल की उसने यह इसलिए किया कि तुम समझोगे कि वह यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर है।

“जब तुम इस स्थान पर आए तब हेशबोन का राजा सीहोन और बाशान का राजा ओग हम लोगों के विरुद्ध लड़ने आए। किन्तु हम लोगों ने उन्हें हराया। तब हम लोगों ने ये प्रदेश रूबेनियों, गादियों और मनश्शे के आधे लोगों को उनके कब्जे में दे दिया। इसलिए, इस वाचा के आदेशों का पालन पूरी तरह करो। तब जो कुछ तुम करोगे उसमे सफल होगे।

10 “आज तुम सभी यहोवा अपने परमेश्वर के सामने खड़े हो। तुम्हारे प्रमुख, तुम्हारे अधिकारी, तुम्हारे बुजुर्ग (प्रमुख) और सभी अन्य लोग यहाँ हैं। 11 तुम्हारी पत्नियाँ और बच्चे यहाँ हैं तथा वे विदेशी भी यहाँ हैं जो तुम्हारे बीच रहते हैं एवं तुम्हारी लकड़ियाँ काटते और पानी भरते हैं। 12 तुम सभी यहाँ यहोवा अपने परमेश्वर के साथ एक वाचा करने वाले हो। यहोवा तुम लोगों के साथ यह वाचा आज कर रहा है। 13 इस वाचा द्वारा यहोवा तुम्हें अपने विशेष लोग बना रहा है और वह स्वंय तुम्हारा परमेश्वर होगा। उसने यह तुमसे कहा है। उसने तुम्हारे पूर्वजों इब्राहीम, इसहाक और याकूब को यह वचन दिया था। 14 यहोवा अपना वचन देकर केवल तुम लोगों के साथ ही वाचा नहीं कर रहा है। 15 वह यह वाचा हम सभी के साथ कर रहा है जो यहाँ आज यहोवा अपने परमेश्वर के सामने खड़े हैं। किन्तु यह वाचा हमारे उन वंशजों के लिये भी है जो यहाँ आज हम लोगों के साथ नहीं हैं। 16 तुम्हें याद है कि हम मिस्र में कैसे रहे और तुम्हें याद है कि हमने उन देशों से होकर कैसे यात्रा की जो यहाँ तक आने वाले हमारे रास्ते पर थे। 17 तुमने उनकी घृणित चीज़ें अर्थात् लकड़ी, पत्थर, चाँदी, और सोने की बनी देवमूर्तियाँ देखीं। 18 निश्चय कर लो कि आज यहाँ हम लोगों में कोई ऐसा पुरुष, स्त्री, परिवार या परिवार समूह नहीं है जो यहोवा, अपने परमेश्वर के विपरीत जाता हो। कोई भी व्यक्ति उन राष्ट्रों के देवताओं की सेवा करने नहीं जाना चाहिए। जो लोग ऐसा करते हैं वे उस पौधे की तरह हैं जो कड़वा, जहरीला फसल पैदा करता है।

19 “कोई व्यक्ति इन अभिशापों को सुन सकता है और अपने को संतोष देता हुआ कह सकता है, ‘मैं जो चाहता हूँ करता रहूँगा। मेरा कुछ भी बुरा नहीं होगा।’ वह व्यक्ति अपने ऊपर ही आपत्ति नहीं बुलाएगा अपितु वह सबके ऊपर अच्छे लोगों पर भी बुलाएगा।[d] 20-21 यहोवा उस व्यक्ति को क्षमा नहीं करेगा। नहीं, यहोवा उस व्यक्ति पर क्रोधित होगा और बौखला उठेगा। इस पुस्तक में लिखे सभी अभिशाप उस पर पड़ेंगे। यहोवा उसे इस्रएल के सभी परिवार समूहों से निकाल बाहर करेगा। यहोवा उसको पूरी तरह नष्ट करेगा। सभी आपत्तियाँ जो इस पुस्तक में लिखी गई हैं, उस पर आयेंगी। वे सभी बातें उस वाचा का अंश हैं जो व्यवस्था की पुस्तक में लिखी गई हैं।

22 “भविष्य में, तुम्हारे वंशज और बहुत दूर के देशों से आने वाले विदेशी लोग देखेंगे कि देश कैसे बरबाद हो गया है। वे उन लोगों को देखेंगे जिन्हें यहोवा उनमें लायेगा। 23 सारा देश जलते गन्धक और नमक से ढका हुआ बेकार हो जाएगा। भूमि में कुछ भी बोया हुआ नहीं रहेगा। कुछ भी, यहाँ तक कि खर—पतवार भी यहाँ नहीं उगेंगे। यह देश उन नगरों—सदोम, अमोरा, अदमा और सबोयीम, की तरह नष्ट कर दिया जाएगा। जिन्हें यहोवा, ने तब नष्ट किया था जब वह बहुत क्रोधित था।

24 “सभी दूसरे राष्ट्र पूछेंगे, ‘यहोवा ने इस देश के साथ ऐसा क्यों किया? वह इतना क्रोधित क्यों हुआ?’ 25 उत्तर होगा: ‘यहोवा इसलिए क्रोधित हुआ कि इस्राएल के लोगों ने यहोवा, अपने पूर्वजों के परमेश्वर की वाचा तोड़ी। उन्होंने उस वाचा का पालन करना बन्द कर दिया जिसे योहवा ने उनके साथ तब किया था जब वह उन्हें मिस्र देश से बाहर लाया था। 26 इस्राएल के लोगों ने ऐसे अन्य देवाताओं की सेवा करनी आरम्भ की जिनकी पूजा का ज्ञान उन्हें पहले कभी नहीं था। यहोवा ने अपने लोगों से उन देवताओं की पूजा करना मना किया था। 27 यही कारण है कि यहोवा इस देश के लोगों के विरुद्ध बहुत क्रोधित हो गया। इसलिए उसने इस पुस्तक में लिखे गए सभी अभिशापों को इन पर लागू किया। 28 यहोवा उन पर बहुत क्रोधित हुआ और उन पर बौखला उठा। इसलिए उसने उनके देश से उन्हें बाहर किया। उसने उन्हें दूसरे देश में पहुँचाया जहाँ वे आज हैं।’

29 “कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें यहोवा हमारे परमेश्वर ने गुप्त रखा है। उन बातों को केवल वह ही जानता है। किन्तु यहोवा ने हमें अपने नियमों की जानकारी दी है! वह व्यवस्था हमारे लिये और हमारे वंशजों के लिये है। हमें इसका पालन सदैव करना चाहिए!

इस्राएलियों की वापसी का वचन

30 “जो मैंने कहा है वह तुम पर घटित होगा। तुम आशीर्वाद से अच्छी चीजें पाओगे और अभिशाप से बुरी चीज़ें पाओगे। यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें दूसरे राष्ट्रों में भेजेगा। तब तुम इनके बारे में सोचोगे। उस समय तुम और तुम्हारे वंशज यहोवा, अपने परमेश्वर के पास लौटेंगे। तुम पूरे हृदय और आत्मा से उन आदेशों का पालन करोगे जो आज हम ने दिये हैं उनका पूरा पालन करोगे। तब यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम पर दयालु होगा। यहोवा तुम्हें फिर स्वतन्त्र करेगा। वह उन राष्ट्रों से तुम्हें लौटाएगा जहाँ उसने तुम्हें भेजा था। चाहे तुम पृथ्वी के दूरतम स्थान पर भेज दिये गये हो, यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर तुमको इकट्ठा करेगा और तुम्हें वहाँ से वापस लाएगा। यहोवा तुम्हें उस देश में लाएगा जो तुम्हारे पूर्वजों का था और वह देश तुम्हारा होगा। यहोवा तुम्हारा भला करेगा और तुम्हारे पास उससे अधिक होगा, जितना तुम्हारे पूर्वजों के पास था और तुम्हारे राष्ट्र में उससे अधिक लोग होंगे जितने उनके पास कभी थे। यहोवा तुम्हारा परमेश्वर, तुम्हें और तुम्हारे वंशजों को परिशुद्ध करेगा कि वे उसकी आज्ञा का पालन करना चाहेंगे।[e] तब तुम यहोवा को सम्पूर्ण हृदय से प्रम करोगे और तुम जीवित रहोगे!

“और यहोवा तुम्हारा परमेश्वर इन अभिशापों को तुम्हारे उन शत्रुओं पर उतारेगा जो तुमसे घृणा करते हैं तथा तुम्हें परेशान करते हैं और तुम फिर यहोवा की आज्ञा का पालन करोगे। तुम उन सभी आदेशों का पालन करोगे जिन्हें मैंने आज तुम्हें दिये है। यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें उन सब में सफल बनाएगा जो तुम करोगे। वह तुम्हें बहुत से बच्चों के लिये, तुम्हारे मवेशियों को बहुत बछड़े और तुम्हारे खेतों को अच्छी फ़सल होने का वरदान देगा। यहोवा तुम्हारे लिए भला होगा। यहोवा तुम्हारा भला करने में वैसा ही आनन्दित होगा जैसा आनन्दित वह तुम्हारे पूर्वजों का भला करने में होता था। 10 किन्तु तुम्हें वह सब कुछ करना चाहिए जो यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुमसे करने को कहता है। तुम्हें उसके आदेशों को मानना और व्यवस्था की पुस्तक में लिखे गए नियमों का पालन करना चाहिए। तुम्हें यहोवा अपने परमेश्वर की ओर अपने पूरे हृदय और आत्मा से हो जाना चाहिए। तब ये सभी अच्छी बातें तुम्हारे लिये होंगी।

जीवन या मरण

11 “आज जो आदेश मैं तुम्हें दे रहा हूँ, वह तुम्हारे लिये बहुत कठिन नहीं है। यह तुम्हारी पहुँच के बाहर नहीं है। 12 यह आदेश स्वर्ग में नहीं है जिससे तुम्हें कहना पड़े, ‘हम लोगों के लिये स्वर्ग में कौन जाएगा और उसे हम लोगों के पास लाएगा जिससे हम उसे सुन सकें और उसका अनुसरण कर सकें?’ 13 यह आदेश समुद्र के दूसरे पार नहीं है जिससे तुम यह कहो कि ‘हमारे लिये समुद्र कौन पार करेगा और इसे लाएगा जिससे हम इसे सुन सकें और कर सकें?’ 14 नहीं, यहोवा का वचन तुम्हारे पास है। यह तुम्हारे मूँह और तुम्हारे हृदय में है जिससे तुम इसे कर सको।

15 “मैंने आज तुम्हारे सम्मुख जीवन और मृत्यु, समृद्धि और विनाश रख दिया है। 16 मैं आज तुम्हें आदेश देता हूँ कि यहोवा अपने परमेश्वर से प्रेम करो, उसके मार्ग पर चलो और उसके आदेशों, विधियों और नियमों का पालन करो। तब तुम जीवित रहोगे और तुम्हारा राष्ट्र अधिक बड़ा होगा। और यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें उस देश में आशीर्वाद देगा जिसे अपना बनाने के लिए तुम वहाँ जा रहे हो। 17 किन्तु यदि तुम यहोवा से मुँह फेरते हो और उसकी अनसुनी करते हो तथा दूसरे देवताओं की सेवा और पूजा में बहकाये जाते हो 18 तब तुम नष्ट कर दिये जाओगे। मैं चेतावनी दे रहा हूँ, तुम यरदन नदी के पार के उस देश में लम्बे समय तक नहीं रहोगे जिसमें जाने के लिये तुम तैयार हो और जिसे तुम अपना बनाओगे।

19 “आज मैं तुम्हें दो मार्ग को चुनने की छूट दे रहा हूँ। मैं धरती—आकाश को तुम्हारे चुनाव का साक्षी बना रहा हूँ। तुम जीवन को चुन सकते हो, या तुम मृत्यु को चुन सकते हो। जीवन का चुनना वरदान लाएगा और मृत्यु को चुनना अभिशाप। इसलिए जीवन को चुनो। तब तुम और तुम्हारे बच्चे जीवित रहेंगे। 20 तुम्हें यहोवा अपने परमेश्वर को प्रेम करना चाहिए और उसकी आज्ञा माननी चाहिए। उससे कभी विमुख न हो। क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा जीवन है, और यहोवा तुम्हें उस देश में लम्बा जीवन देगा जिसे उसने तुम्हारे पूर्वजों इब्राहीम, इसहाक और याकूब को देने का वचन दिया था।”

यहोशू नया नेता होगा

31 तब मूसा आगे बढ़ा और इस्राएलियों से ये बात कही। मूसा ने उनसे कहा, “अब मैं एक सौ बीस वर्ष का हूँ। मैं अब आगे तुम्हारा नेतृत्व नहीं कर सकता। यहोवा ने मुझसे कहा है: ‘तुम यरदन नदी के पार नहीं जाओगे।’ यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे आगे चलेगा! वह इन राष्ट्रों को तुम्हारे लिए नष्ट करेगा। तुम उनका देश उससे छीन लोगे। यहोशू उस पार तुम लोगों के आगे चलेगा। योहवा ने यह कहा है।

“यहोवा इन राष्ट्रों के लोगों के साथ वही करेगा जो उसने एमोरियों के राजाओं सीहोन और ओग के साथ किया। उन राजाओं के देश के साथ उसने जो किया वही यहाँ करेगा। यहोवा ने उनके प्रदेशों को नष्ट किया! और यहोवा तुम्हें उन राष्ट्रों को पराजित करने देगा और तुम उनके साथ वह सब करोगे जिसे करने के लिये मैंने कहा है। दृढ़ और साहसी बनो। इन राष्ट्रों से डरो नहीं। क्यों? क्योंकि यहोवा तुम्हारा परमेश्वर तुम्हारे साथ जा रहा है। वह तुम्हें न छोड़ेगा और न त्यागेगा।”

तब मूसा ने यहोशू को बुलाया। जिस समय मूसा यहोशू से बातें कर रहा था उस समय इस्राएल के सभी लोग देख रहे थे। जब मूसा ने यहोशू से कहा, “दृढ़ और साहसी बनो। तुम इन लोगों को उस देश में ले जाओगे जिसे यहोवा ने इनके पूर्वजों को देने का वचन दिया था। तुम इस्राएल के लोगों की सहायता उस देश को लेने और अपना बनाने में करोगे। यहोवा आगे चलेगा। वह स्वयं तुम्हारे साथ है। वह तुम्हें न सहायता देना बन्द करेगा, न ही तुम्हें छोड़ेगा। तुम न ही भयभीत न ही चिंतित हो!”

मूसा व्यवस्था लिखाता है

तब मूसा ने इन नियमों को लिखा और लेवी के वंशज याजकों को दे दिया। उनका काम यहोवा के साक्षीपत्र के सन्दूक को ले चलना था। मूसा ने इस्राएल के सभी प्रमुखों को नियम दिए। 10 तब मूसा ने प्रमुखों को आदेश दिया। उसने कहा, “हर एक सात वर्ष बाद, स्वतन्त्रता के वर्ष में डेरों के पर्व में इन नियमों को पढ़ो। 11 उस समय इस्राएल के सभी लोग यहोवा, अपने परमेश्वर से मिलने के लिए उस विशेष स्थान पर आएंगे जिसे वे चुनेंगे। तब तुम लोगों में इन नियमों को ऐसे पढ़ना जिससे वे इसे सुन सकें। 12 सभी लोगों, पुरुषों, स्त्री, छोटे बच्चों और अपने नगरों में रहने वाले सभी विदेशियों को इकट्ठा करो। वे नियम को सुनेंगे, और वे यहोवा तुम्हारे परमेश्वर का आदर करना सीखेंगे और वे इस नियम व आदेशों के पालन में सावधान रहेंगे 13 और तब उनके वंशज जो नियम नहीं जानते, इसे सुनेंगे और वे यहोवा तुम्हारे परमेश्वर का सम्मान करना सीखेंगे। वे तब तक सम्मान करेंगे जब तक तुम उस देश में रहोगे जिसे तुम यरदन नदी के उस पार लेने के लिये तैयार हो।”

यहोवा मूसा और यहोशू को बुलाता है

14 यहोवा ने मूसा से कहा, “अब तुम्हारे मरने का समय निकट है। यहोशू को लो और मिलापवाले तम्बू में जाओ। मैं यहोशू को बताऊँगा कि वह क्या करे।” इसलिए मूसा और यहोशू मिलापवाले तम्बू में गए।

15 यहोवा बादलों के एक स्तम्भ के रूप में प्रकट हुआ। बादल का स्तम्भ तम्बू के द्वार पर खड़ा था। 16 यहोवा ने मूसा से कहा, “तुम शीघ्र ही मरोगे और जब तुम अपने पूर्वजों के साथ चले जाओगे तो ये लोग मुझ पर विश्वास करने वाले नहीं रह जायेंगे। वे उस वाचा को तोड़ देंगे जो मैंने इनके साथ की है। वे मुझे छोड़ देंगे और अन्य देवताओं की पूजा करना आरम्भ करेंगे, उन प्रदेशों के बनावटी देवताओं की जिनमें वे जायेंगे। 17 उस समय, मैं इन पर पहुत क्रोधित होऊँगा और इन्हें छोड़ दूँगा। मैं उनकी सहायता करना बन्द करुँगा और वे नष्ट हो जाएँगे। उनके साथ भयंकर घटनायें होंगी और वे विपत्ति में पड़ेंगे। तब वे कहेंगे, ‘ये बुरी घटनायें हम लोगों के साथ इसलिए हो रही हैं कि हमारा परमेश्वर हमारे साथ नहीं है।’ 18 तब मैं उनसे अपना मुँह छिपाऊँगा क्योंकि वे बुरा करेंगे और दूसरे देवताओं की पूजा करेंगे।

19 “इसलिए इस गीत को लिखो और इस्राएली लोगों को सिखाओ। उन्हें इसे गाना सिखाओ। तब इस्राएल के लोगों के विरूद्ध मेरे लिये यह गीत साक्षी रहेगा। 20 मैं उन्हें उस देश में जो अच्छी चीज़ों से भरा—पूरा है तथा जिसे देने का वचन मैंने उनके पूर्वजों को दिया है, ले जाऊँगा और वे जो खाना चाहेंगे, सब पाएंगे। वे सम्पन्नता से भरा जीवन बिताएंगे। किन्तु तब वे दूसरे देवताओं की ओर जाएंगे और उनकी सेवा करेंगे, वे मुझसे मुँह फेर लेंगे तथा मेरी वाचा को तोड़ेंगे, 21 तब उन पर भयंकर आपत्तियाँ आएंगी और वे बड़ी मुसीबत में होंगे। उस समय उनके लोग इस गीत को तब भी जानेंगे और यह उन्हें बताएगा कि वे कितनी बड़ी गलती पर हैं। मैंने अभी तक उनको उस देश में नहीं पहुँचाया है जिसे उन्हें देने का वचन मैंने दिया है। किन्तु मैं पहले से ही जानता हूँ कि वे वहाँ क्या करने वाले हैं, क्योंकि मैं उनकी प्रकृति से परिचित हूँ।”

22 इसलिए मूसा ने उसी दिन गीत लिखा और उसने गीत को इस्राएल के लोगों को सिखाया।

23 तब यहोवा ने नून के पुत्र यहोशू से बातें कीं। यहोवा ने कहा, “दृढ़ और साहसी बनो। तुम इस्राएल के लोगों को उस देश में ले चलोगे जिसे उन्हें देने का मैंने वचन दिया है और मैं तुम्हारे साथ रहूँगा।”

मूसा इस्राएल के लोगों को चेतावनी देता है

24 मूसा ने ये सारे नियम एक पुस्तक में लिखे। जब उसने इसे पूरा कर लिया तब 25 उसने लेवीवंशियों को आदेश दिया (ये लोग यहोवा के साक्षीपत्र के सन्दूक की देखभाल करते थे) मूसा ने कहा, 26 “इस व्यवस्था की किताब को लो और योहवा, अपने परमेश्वर के साक्षीपत्र के सन्दूक की बगल में रखो। तब यह वहाँ तुम्हारे विरुद्ध साक्षी होगी। 27 मैं जानता हूँ कि तुम बहुत अड़ियल हो। मैं जानता हूँ तुम मनमानी करना चाहते हो। ध्यान दो, आज जब मैं तुम्हारे साथ हूँ तब भी तुमने यहोवा की आज्ञा मानने से इन्कार किया है। मेरे मरने के बाद तुम योहवा की आज्ञा मानने से और अधिक इन्कार करोगे। 28 अपने सभी परिवार समूहों के प्रमुखों और अधिकारियों को एक साथ बुलाओ। मैं उन्हें यह सब कुछ बताऊँगा और मैं पृथ्वी और आकाश को उनके विरुद्ध साक्षी होने के लिए बुलाऊँगा। 29 मैं जानता हूँ कि मेरी मृत्यु के बाद तुम लोग कुकर्म करोगे। तुम उस मार्ग से हट जाओगे जिस पर चलने का आदेश मैंने दिया है। तब भविष्य में तुम पर आपत्तियाँ आएंगी। क्यों? क्योंकि तुम वह करना चाहते हो जिसे यहोवा बुरा बताता है। तुम उसे उन कामों को करने के कारण क्रोधित करोगे।”

मूसा का गीत

30 तब मूसा ने इस्राएल के सभी लोगों को यह गीत सुनाया। वह तब तक नहीं रुका जब तक उसने इसे पूरा न कर लिया:

32 “हे गगन, सुन मैं बोलूँगा,
    पृथ्वी मेरे मुख से सुन बात।
बरहसेंगे वर्षा सम मेरे उपदेश,
    हिम—बिन्दु सम बहेगी पृथ्वी पर वाणी मेरी,
कोमल घासों पर वर्षा की मन्द झड़ी सी,
    हरे पौधों पर वर्षा सी।
परमेश्वर का नाम सुनाएगी मैं कहूँगा,
    कहो यहोवा महान है।

“वह (यहोवा) हमारी चट्टान है—
    उसके सभी कार्य पूर्ण हैं! क्यों?
    क्योंकि उसके सभी मार्ग सत्य हैं!
वह विश्वसनीय निष्पाप परमेश्वर,
    करता जो उचित और न्याय है।
तुम लोगों ने दुर्व्यवहार किया उससे अतः नहीं उसके जन तुम सच्चे।
    आज्ञा भंजक बच्चों से तुम हो,
    तुम एक दुष्ट और भ्रष्ट पीढ़ी हो।
चाहिए न वह व्यवहार तुम्हारा यहोवा को,
    तुम मूर्ख और बुद्धिहीन जन हो।
योहवा परम पिता तुम्हारा है,
    उसने तुमको बनाया, उसने निज जन के दृढ़ बनाया तुमको।

“याद करो बीते हुए दिनों को
    सोचो बीती पीढ़ीयों के वर्षों को,
पूछो वृद्ध पिता से, वही कहेंगे पूछो अपने प्रमुखों से;
    वही कहेंगे।
सर्वोच्च परमेश्वर ने राष्ट्रों को
    अपने देश दिए,
निश्चित यह किया कहाँ ये लोग रहेंगे,
    तब अन्यों का देश दिया इस्राएल—जन को।
योहवा की विरासत है उसके लोग;
    याकूब (इस्राएल) यहोवा का अपना है।

10 “यहोवा ने याकूब (इस्राएल) को पाया मरू में,
    सप्त, झंझा—स्वरित उजड़ मरुभूमि में
योहवा ने याकूब को लिया अंक में, रक्षा की उसकी,
    यहोवा ने रक्षा की, मानों वह आँखों की पुतली हो।
11 यहोवा ने फैलाए पर, उठा लिया इस्राएलियों को,
    उस उकाब—सा जो जागा हो अपनी नीड़ में,
और उड़ता हो अपने बच्चे के ऊपर,
    उनको लाया यहोवा अपने पंखों पर।
12 अकेले यहोवा ले आया याकूब को,
    कोई देवता विदेशी उसके पास न थे।
13 यहोवा ने चढ़ाया याकूब को पृथ्वी के ऊंचे स्थानों पर,
    याकूब ने खेतों की फसलें खायीं,
यहोवा ने याकूब को पुष्ट किया चट्टानों के मधु से,
    दिया तेल उसको वज्र—चट्टानों से,
14 मक्खन दिया झुण्डों से, दूध दिया रेवड़ों से,
    माँस दिया मेमनों का,
मेढ़ों का और बाशान जाति के बकरों का अच्छे—से—अच्छा गेहूँ,
    लाल अंगूरी पीने को दी अंगूरों की मादकता।

15 “किन्तु यशूरून मोटा हो, सांड सा लात मारता,
    (वह बड़ा हुआ और भारी भी वह था।)
अभिजात, सुपोषित छोड़ा उसने अपने कर्ता यहोवा को
    अस्वीकार किया अपने रक्षक शिला परमेश्वर को,
16 ईर्ष्यालु बनाया यहोवा को, अन्य देव पूजा कर! उसके जन ने;
    क्रुद्ध किया परमेश्वर को निज मूर्तियों से जो घृणित थीं परमेश्वर को,
17 बलि दी दानवों को जो सच्चे देव नही उन देवों को बलि दी उसने जिसका उनको ज्ञान नहीं।
    नये—नये थे देवता वे जिन्हें न पूजा
    कभी तुम्हारे पूर्वजों ने,
18 तुमने छोड़ा अपने शैल यहोवा को भुलाया
    तुमने अपने परमेश्वर को, दी जिसने जिन्दगी।

19 “यहोवा ने देखा यह, इन्कार किया जन को अपना कहने से,
    क्रोधित किया उसे उसके पुत्रों और पुत्रियों ने!
20 तब यहोवा ने कहा,
‘मैं इनसे मुँह मोडूँगा!
    मैं देख सकूँगा—अन्त होगा क्या उनका।
क्यों? क्योंकि भ्रष्ट सभी उनकी पीढ़ियाँ हैं।
वे हैं ऐसी सन्तान जिन्हें विश्वास नहीं है!
21 मूर्तियों की पूजा करके उन्होंने मुझमें ईर्ष्या उत्पन्न की वे मूर्तियाँ ईश्वर नहीं हैं।
    तुच्छ मूर्तियों को पूज कर उन्होंने मुझे क्रुद्ध किया है! अब मैं इस्राएल को बनाऊँगा ईर्ष्यालु।
मैं उन लोगों का उपयोग करूँगा, जो गठित नहीं हुये हैं राष्ट्र में।
    मैं करूगाँ प्रयोग मूर्ख राष्ट्र का और लोगों से उन पर क्रोध बरसाऊँगा।
22 क्रोध हमारा सुलगा चुका आग कहीं,
    मेरा क्रोध जल रहा निम्नतम शेओल तक,
    मेरा क्रोध नष्ट करता फसल सहित भूमि को,
    मेरा क्रोध लगाता आग पर्वतों की जड़ों में!

23 “‘मैं इस्राएलियों पर विपत्ति लाऊँगा,
    मैं अपने बाण इन पर चलाऊँगा।
24 वे भूखे, क्षीण और दुर्बल होंगे,
    जल जायेंगे जलती गर्मी में वे और होगा भंयकर विनाश भेजूँगा
मैं वन—पशुओं को भक्षण करने
    उनका धूलि रेंगते विषधर भी उनके संग होंगे,
25 तलवारें सड़कों पर उनको सन्तति मिटा देगी,
    घर के भीतर रहेगा आतंक का राज्य,
सैनिक मारेंगे युवकों और कुमारियों को
    ये शिशुओं और श्वेतकेशी वृद्धों को मारेंगे।

26 “‘मैं कहूँगा, इस्राएलयों को दूर उड़ाऊँगा।
    विस्मृत करवा दूँगा इस्राएलियों को लोगोंसे!
27 मुझे भय था कि, शत्रु कहेंगे
    उनके क्या इस्राएल के शत्रु कह सकते हैं:
समझ फेर से हमने जीता है,
    “अपनी शक्ति से,
    यहोवा ने किया नहीं इसको।”’

28 “इस्राएल के शत्रु मूर्ख राष्ट्र हैं
    वे समझ न पाते कुछ भी।
29 यदि शत्रु समझदार होत
    तो इसे समझ पाते,
    और देखते अपना अन्त भविष्य में
30 एक कैसे पीछा करता सहस्र को?
    कैसे दो भगा देते दस सहस्र को?
यह तब होता जब शैल
    यहोवा देता उनको,
उनके शत्रुओं को, और परमेश्वर उन्हें
    बेचता गुलामों सा।
31 शैल शत्रुओं को नहीं हमारे शैल यहोवा सदृश
    हमारे शत्रु स्वयं देख सकते इस सत्य को।
32 सदोम और अमोरा की दाखलताओं के समान कड़वे हैं उनके गुच्छे अंगूर के।
उनके अंगूर विषैले होते हैं उनके अंगूरों के गुच्छे कडवे होते।
33     उनकी दाखमधु साँपों के विष जैसी है और क्रूर कालकूट अस्प नाम का।”

34 यहोवा ने कहा, “मैं उस दण्ड से रक्षा करता हूँ।
    मैं अपने वस्तु भण्डार में बन्द किया!
35 केवल मैं हूँ देने वाला दण्ड मैं ही देता लोगों को अपराधों का बदला,
    जब उनका पग फिसल पड़ेगा अपराधों में,
क्यों? क्योंकि विपत्ति समय उनका समीप है
    और दण्ड समय उनका दौड़ा आएगा।”

36 “यहोवा न्याय करेगा अपने जन का।
    वे उसके सेवक हैं, वह दयालु होगा।
वह उसके बल को मिटा देगा
    वह उन सभी स्वतन्त्र
    और दासों को होता देखेगा असहाय।
37 पूछेगा वह तब,
    ‘लोगों के देवता कहाँ हैं?
    वह है चट्टान कहाँ, जिसकी शरण गए वे?
38 लोगों के ये देव, बलि की चर्बी खाते थे,
    और पीते थे मदिरा, मदिरा की भेंट की।
अतः उठें ये देव, मदद करें तेरी करें
    तुम्हारी ये रक्षा!
39 देखो, अब केवल मैं ही परमेश्वर हूँ।
    नहीं अन्य कोई भी परमेश्वर
मैं ही निश्चय करता लोगों को
    जीवित रखूँ या मारूँ।
मैं लोगों को दे सकता हूँ चोट
    और ठीक भी रख सकत हूँ।
और न बचा सकता कोई किसी को मेरी शक्ति के बाहर।
40 आकाश को हाथ उठा मैं वचन देता हूँ।
    यदि यह सत्य है कि मैं शाश्वत हूँ।
तो यह भी सत्य कि
    सब कुछ होगा यही!
41 मैं तेज करूँगा अपनी बिजली की तलवार।
    उपयोग करूँगा इसका
    मैं शत्रुओं को दण्डित करने को।
    मैं दूँगा वह दण्ड उन्हें जिसके वे पात्र हैं।
42 मेरे शत्रु मारे जाऐंगे, बन्दी होंगे।
रंग जाएंगे बाण हमारे उनके रक्त से।
तलवार मेरी पार करेगी उनके सैनिक सिर को।’

43 “होगा हर्षित सब संसार परमेश्वर के लोगों से क्यों?
    क्योंकि वह उनकी करता है सहायता सेवकों के हत्यारों को वह दण्ड दिया करता है।
देगा वह दण्ड शत्रु को जिसके वे पात्र हैं।
    और वह पवित्र करेगा अपने धरती जन को।”

मूसा लोगों को अपना गीत सिखाता है

44 मूसा आया और इस्राएल के सभी लोगों को सुनने के लिये यह गीत पूरा गाया। नून का पुत्र यहोशू मूसा के साथ था। 45 जब मूसा ने लोगों को यह उपदेश देना समाप्त किया 46 तब उसने उनसे कहा, “तुम्हें निश्चय करना चाहिए कि तुम उन सभी आदेशों को याद रखोगे जिसे मैं आज तुम्हें बता रहा हूँ और तुम्हें अपने बच्चों को यह बताना चाहिए कि इन व्यवस्था के आदेशों का वे पूरी तरह पालन करें। 47 यह मत समझो कि ये उपदेश महत्वपूर्ण नहीं हैं! ये तुम्हारा जीवन है! इन उपदेशों से तुम उस यरदन नदी के पार के देश में लम्बे समय तक रहोगे जिसे लेने के लिये तुम तैयार हो।”

मूसा नबो पर्वत पर

48 यहोवा ने उसी दिन मूसा से बातें कीं। यहोवा ने कहा, 49 “अबारीम पर्वत पर जाओ। यरीहो नगर से होकर मोआब प्रदेश में नबो पर्वत पर जाओ। तब तुम उस कनान प्रदेश को देख सकते हो जिसे मैं इस्राएल के लोगों को रहने के लिए दे रहा हूँ। 50 तुम उस पर्वत पर मरोगे। तुम वैसे ही अपने उन लोगों से मिलोगे जो मर गए हैं जैसे तुम्हारे भाई हारून होर पर्वत पर मरा और अपने लोगों में मिला। 51 क्यों? क्योंकि जब तुम सीन की मरुभूमि में कादेश के निकट मरीबा के जलाशयों के पास थे तब मेरे विरुद्ध पाप किया था और इस्राएल के लोगों ने उसे वहाँ देखा था। तुमने मेरा सम्मान नहीं किया और तुमने यह लोगों को नहीं दिखाया कि मैं पवित्र हूँ। 52 इसलिए अब तुम अपने सामने उस देश को देख सकते हो किन्तु तुम उस देश में जा नहीं सकते जिसे मैं इस्राएल के लोगों को दे रहा हूँ।”

मूसा इस्राएल के लोगों को आशीर्वाद देता है

33 मरने के पहले परमेश्वर के व्यक्ति मूसा ने इस्राएल के लोगों को यह आशीर्वाद दिया। मूसा ने कहा:

“यहोवा सीनै से आया,
    यहोवा सेईर पर प्रातःकालीन प्रकाश सा था।
    वह पारान पर्वत से ज्योतित प्रकाश—सम था।
यहोवा दस सहस्त्र पवित्र लोगों (स्वर्गदूतों) के साथ आया।
    उसकी दांयी ओर बलिष्ठ सैनिक थे।
हाँ, यहोवा प्रेम करता है लोगों से
    सभी पवित्र जन उसके हाथों में हैं और चलते हैं
वह उसके पदचिन्हों पर हर एक व्यक्ति स्वीकारता उपदेश उसका!
मूसा ने दिये नियम हमें वे—जो हैं
    याकूब के सभी लोगों के।
यशूरुन ने राजा पाया,
    जब लोग और प्रमुख इकट्ठे थे।
    यहोवा ही उसका राजा था!

रूबेन को आशीर्वाद

“रूबेन जीवित रहे, न मरे वह।
    उसके परिवार समूह में जन अनेक हों!”

यहूदा को आशीर्वाद

मूसा ने यहूदा के परिवार समूह के लिए ये बातें कहीं:

“यहोवा, सुने यहूदा के प्रमुख कि जब वह मांगे सहायता लाए उसे
    अपने जनों में शक्तिशाली बनाए उसे,
करे सहायता उसकी शत्रु को हराने मे!”

लेवी को आशीर्वाद

मूसा ने लेवी के बारे में कहाः

“तेरा अनुयायी सच्चा लेवी धारण करता ऊरीम—तुम्मीम,
    मस्सा पर तूने लेवी की परीक्षा की,
तेरा विशेष व्यक्ति रखता उन्हें।
लड़ा तू था उसके लिये मरीबा के जलाशयों पर।
लेवी ने बताया निज, माता—पिता के विषय में:
मैं न करता उनकी परवाह,
स्वीकार न किया उसने अपने भाई को,
या जाना ही अपने बच्चों को;
लेवीवंशियों ने पाला आदेश तेरा,
    और निभायी वाचा तुझसे जो।
10 वे सिखायेंगे याकूब को नियम तेरे।
और इस्राएल को व्यवस्था जो तेरे।
    वे रखेंगे सुगन्धि सम्मुख तेरे सारी होमबलि वेदी के ऊपर।

11 “यहोवा, लेवीवंशियों का जो कुछ हो,
    आशीर्वाद दे उसे,
जो कुछ करे वह स्वीकार करे उसको।
    नष्ट करे उसको जो आक्रमण करे उन पर।”

बिन्यामीन को आशीर्वाद

12 बिन्यामीन के विषय में मूसा ने कहाः

“यहोवा का प्यारा उसके साथ
    सुरक्षित होगा।
यहोवा अपने प्रिय की रक्षा करता सारे दिन,
    और बिन्यामीन की भूमि पर यहोवा रहता।”

यूसुफ को आशीर्वाद

13 मूसा ने यूसुफ के बारे में कहा:

“यहोवा दे आशीर्वाद उसके देश को स्वर्ग की
    उत्तम वस्तुऐं जहाँ हों;
    वह सम्पत्ति वहाँ हो जो धरती कर रही प्रतीक्षा।
14 सूरज का दिया उत्तम फल उसका हो
    महीनों की उत्तम फ़सने उसकी हों।
15 प्राचीन पर्वतों की उतलेंम उपज उसकी हो—
    शाश्वत पहाड़ियों की उत्तम चीज़ें भी।
16 आशीर्वाद सहित धरती की उत्तम भेंटें उसकी हों।
जलती झाड़ी का यहोवा उसका पक्षधर हो
    यूसुफ के सिर पर वरदानों की वर्षा हो
    यूसुफ के सिर के ऊपर भी जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण उसके भ्राताओं में।
17 यूसुफ के झुण्ड का प्रथम साँड गौरव पाएगा।
    इसकी सींगें सांड सी लम्बी होंगी।
यूसुफ का झुण्ड भगाएगा लोगों को।
    पृथ्वी की अन्तिम छोर जहाँ तक जाती है।
हाँ, वे हैं दस सहस्त्र एप्रैम से
    हाँ, वे हैं एक सहस्त्र मनश्शे से।”

जबूलून को आशीर्वाद

18 जबूलून के बारे में मूसा ने कहाः

“जबूलून, खुश होओ, जाओ जब बाहर,
और इस्साकार रहे तुम्हारे डेरों में।
19 वे लोगों का आहवान करेंगे अपने गिरि पर,
    वहाँ करेंगे भेंट सभी सच्ची बलि क्यों?
क्योंकि वे लोग सागर से निकालते हैं धन
    और पाएंगे बालू में छिपा हुआ जो धन है।”

गाद को आशीर्वाद

20 मूसा ने गाद के बारे में कहा:

“स्तुति करो परमेश्वर की जो बढ़ाता है गाद को!
गाद लेटा करता सिंह सदृश,
    वह उखाड़ता भुजा, भंग करता खोपड़ियाँ।
21 अपने लिए चुनता है
    वह सबसे प्रमुख हिस्सा और आता
वह लोगों के प्रमुखों के संग करता
    वह इस्राएल के संग जो यहोवा की इच्छा होती है
    और यहोवा के लिए न्याय करता है।”

दान को आशीर्वाद

22 दान के बारे में मूसा ने कहा:

“दान सिंह का बच्चा है जो बाशान में उछला करता।”

नप्ताली को आशीर्वाद

23 नप्ताली के बारे में मूसा ने कहाः

“नप्ताली, तुम लोगे बहुत सी अच्छी चीज़ों को,
    यहोवा का आशीर्वाद तुम्हें पूरा है,
ले लो पश्चिम और दक्षिण प्रदेश।”

आशेर को आशीर्वाद

24 मूसा ने आशेर के बारे में कहाः

“आशेर को पुत्रों में सर्वाधिक है आशीर्वाद,
    उसे निज भ्राताओं में प्रिय होने दो
    और उसे अपने चरण तेल से धोने दो।
25 तुम्हारी अर्गलाएँ लोहे—काँसे होंगे शक्ति
    तुम्हारी आजीवन रहेगी बनी।”

मूसा परमेश्वर की स्तुति करता है

26 “यशूरुन, परमेश्वर सम नहीं
दूसरा कोई परमेश्वर अपने गौरव मे चलता है चढ़ बादल पर,
    आसमान से होकर आता करने मदद तुम्हें।
27 शाश्वत परमेश्वर तुम्हारी शरण सुरक्षित है।
    और तुम्हारे नीचे शाश्वत भुजाऐं हैं
परमेश्वर जो बल से दूर हटाता शत्रु तुम्हारे,
कहता है वह ‘नष्ट करो शत्रु को!’
28 ऐसे इस्राएल रक्षित रहता है जो केवल
    याकूब का जलस्रोत धरती में सुरिक्षत है।
अन्न और दाखमधु की सुभूमि में हाँ
    उसका स्वर्ग वहाँ हिम—बिन्दु भेजता।
29 इस्राएलियो, तुम आशीषित हो यहोवा रक्षित राष्ट्र तुम,
    न कोई तुम सम अन्य राष्ट्र।
यहोवा है तलवार विजय[f]
    तुम्हारी करने वाली।
तेरे शत्रु सभी तुझसे डरेगें,
    और तुम रौंद दोगे उनके झूठे देवों की जगहों को।”

मूसा की मृत्यु

34 मूसा मोआब के निचले प्रदेश से नबो पर्वत पर गया जो यरीहो के पार पिसगा की चोटी पर था। यहोवा ने उसे गिलाद से दान तक का सारा प्रदेश दिखलाया। यहोवा ने उसे सारा नप्ताली, जो एप्रैम और मनश्शे का था, दिखाया। उसने भूमध्य सागर तक यहूदा के प्रदेश को दिखाया। यहोवा ने मूसा को खजूर के पेड़ों के नगर सोअर से यरीहो तक फैली घाटी और नेगेव दिखाया। यहोवा ने मूसा से कहा, “यह वह देश है जिसे मैंने इब्राहिम, इसहाक, और याकूब को वचन दिया था कि, ‘मैं इस देश को तुम्हारे वंशजों को दूँगा।’ मैंने तुम्हें इस देश को दिखाया। किन्तु तुम वहाँ जा नहीं सकते।”

तब यहोवा का सेवक मूसा मोआब देश में वहीं मरा। यहोवा ने मूसा से कहा था कि ऐसा होगा। यहोवा ने बेतपोर के पार मोआब प्रदेश की घाटी में मूसा को दफनाया। किन्तु आज भी कोई नहीं जानता कि मूसा की कब्र कहाँ है। मूसा जब मरा वह एक सौ बीस वर्ष का था। उसकी आँखें कमजोर नहीं थीं। वह तब भी बलवान था। इस्राएल के लोग मूसा के लिए मोआब के निचले प्रदेश में तीस दिन तक रोते चिल्लाते रहे। यह शोक मनाने का पूरा समय था।

यहोशू मूसा का स्थान लेता है

तब नून का पुत्र यहोशू बुद्धिमानी की आत्मा से भरपूर था क्योंकि मूसा ने उस पर अपना हाथ रख दिया था। इस्राएल के लोगों ने यहोशू की बात मानी। उन्होंने वैसा ही किया जैसा यहोवा ने मूसा को आदेश दिया था।

10 किन्तु उस समय के बाद, मूसा की तरह कोई नबी नहीं हुआ। यहोवा परमेश्वर मूसा को प्रत्यक्ष जानता था। 11 किसी दूसरे नबी ने वे सारे चमत्कार और आश्चर्य नहीं दिखाए जिन्हें दिखाने के लिये यहोवा परमेश्वर ने मूसा को मिस्र में भेजा था। वे चमत्कार और आश्चर्य, फिरौन, उसके सभी सेवकों और मिस्र के सभी लोगों को दिखाए गए थे। 12 किसी दूसरे नबी ने कभी उतने शक्तिशाली और आश्चर्यजनक चमत्कार नहीं किए जो मूसा ने किए और जिन्हें इस्राएल के सभी लोगों ने देखा।

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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