Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
32 सुरू के ओ दिनमन ला सुरता करव, परमेसर के अंजोर ला पाय के बाद, जब तुमन कतको दुःख सहत घलो स्थिर रहेव। 33 कभू तुम्हर खुले आम बेजत्ती करे गीस अऊ तुमन ला सताय गीस, त कभू तुमन हर किसम ले ओमन के मदद करेव, जऊन मन के संग ए किसम के गलत बरताव करे जावत रिहिस। 34 तुमन कैदीमन बर सहानुभूति रखेव अऊ जब तुम्हर धन-संपत्ति ला लूटे गीस, त तुमन एला आनंद के संग स्वीकार करेव, काबरकि तुमन जानत रहेव कि तुम्हर करा एकर ले घलो उत्तम अऊ सदा बने रहइया संपत्ति हवय।
35 एकरसेति अपन भरोसा ला झन छोड़व, काबरकि तुमन ला एकर एक बड़े इनाम मिलही। 36 तुमन ला धीरज धरई जरूरी ए, ताकि जब तुमन परमेसर के ईछा ला पूरा कर लेवव, त तुमन ला ओ इनाम मिलय, जेकर वायदा परमेसर ह तुम्हर ले करे हवय। 37 काबरकि परमेसर के बचन ह कहिथे,
“अब बहुंते कम समय बचे हवय;
जऊन ह अवइया हवय,
ओह आही अऊ ओह देरी नइं करय।[a]
38 पर मोर धरमी जन ह बिसवास के दुवारा जीयत रहिही।
अऊ कहूं ओह पाछू हटथे,
त मेंह ओकर ले खुस नइं होवंव।”
39 पर हमन ओ मनखे नो हन, जऊन मन पाछू हट जाथें अऊ नास हो जाथें, पर हमन ओ मनखे अन, जऊन मन बिसवास करथें अऊ बचाय जाथें।
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