Revised Common Lectionary (Semicontinuous)
17 काबरकि हर एक बने अऊ उत्तम बरदान स्वरग ले आथे अऊ परमेसर ददा, जऊन ह अंजोर ला बनाईस, ओकर कोति ले, ए बरदान ह मिलथे, अऊ ओह बदलत छइहां सहीं नइं बदलय। 18 ओह अपन ईछा ले हमन ला सुघर संदेस के दुवारा नवां जिनगी दीस, ताकि हमन परमेसर बर ओकर बनाय जम्मो चीजमन ले अलग करे जावन।
सुनव अऊ करव
19 हे मोर भाईमन, ए गोठ ला तुमन जान लेवव: हर एक मनखे पहिली धियान देके सुनय अऊ धीर धरके बोलय अऊ तुरते गुस्सा झन होवय। 20 काबरकि मनखे के गुस्सा ह परमेसर के धरमीपन नइं लाने सकय। 21 एकरसेति जम्मो गंदगी अऊ बईरता ला छोंड़ देवव, अऊ दीन-हीन होके ओ बचन ला गरहन कर लेवव, जऊन ह तुम्हर हिरदय म बोय गे हवय अऊ तुम्हर उद्धार कर सकथे। 22 पर बचन के मुताबिक चलइया बनव अऊ बचन के सिरिप सुनइया बनके अपन-आप ला धोखा झन देवव। 23 जऊन ह बचन ला सुनथे अऊ ओकर मुताबिक नइं चलय, त ओह ओ मनखे सहीं अय, जऊन ह अपन चेहरा ला दरपन म देखथे। 24 अऊ ओह अपन-आप ला देखके चल देथे अऊ तुरते भुला जाथे कि ओह कइसने दिखथे। 25 पर जऊन मनखे ह ओ सिद्ध कानून ऊपर धियान लगाथे, जऊन ह हमन ला सुतंतर करथे, ओ मनखे ह अपन काम म एकरसेति आसिस पाही, काबरकि ओह सुनके भूलय नइं, पर ओकर मुताबिक चलथे।
26 कहूं कोनो अपन-आप ला धारमिक समझथे अऊ अपन जीभ ला अपन बस म नइं रखय, त ओह अपन-आप ला धोखा देथे अऊ ओकर धरम ह बेकार ए। 27 हमर परमेसर ददा के नजर म सही अऊ बने धरम ए अय कि दुःख म अनाथ अऊ बिधवामन के देख-रेख करय, अऊ अपन-आप ला संसार के बुरई ले अलग रखय।
सुध अऊ असुध
(मत्ती 15:1-9)
7 तब फरीसी अऊ कतको कानून के गुरू, जऊन मन यरूसलेम ले आय रिहिन, यीसू करा जुरिन। 2 अऊ ओमन ओकर कुछू चेलामन ला बिगर हांथ धोय खाना खावत देखिन। 3 फरीसी अऊ जम्मो यहूदी मन, अपन पुरखा के रीति के मुताबिक जब तक अपन हांथ ला नइं धो लिहीं तब तक खाना नइं खावंय। 4 जब बजार ले घलो आवंय, त जब तक अइसने अपन हांथ ला नइं धो लेवंय, तब तक खाना नइं खावंय। अऊ ओमन अइसने कतेक अऊ रीति-रिवाज ला मानंय, जइसने कटोरी, लोटा अऊ तांबा के बरतन ला धोवई-मंजई।
5 एकरसेति ओ फरीसी अऊ कानून के गुरू मन यीसू ले पुछिन, “काबर तोर चेलामन, पुरखामन के रीति-रिवाज के मुताबिक नइं चलंय अऊ बिगर हांथ धोवय खाना खावत हवंय?”
6 ओह जबाब देके कहिस, “यसायाह अगमजानी ह तुम ढोंगीमन के बारे म ठीकेच अगमबानी करे हवय, जइसने कि बचन म लिखे हवय: ‘ए मनखेमन मुहूं ले तो मोर आदर करथंय, पर एमन के मन ह मोर ले दूरिहा रहिथे। 7 एमन बिना मतलब के मोर भक्ति करथंय; एमन मनखेमन के बनाय नियम ला परमेसर के नियम कहिके सिखोथें।’[a]
8 तुमन परमेसर के हुकूम ला टारके मनखेमन के रीति-रिवाज ला मानथव।”
14 तब यीसू ह मनखेमन ला अपन करा बलाके कहिस, “जम्मो झन मोर गोठ ला सुनव अऊ समझे के कोसिस करव। 15 अइसने कोनो चीज नइं ए, जऊन ह मनखे म बाहिर ले हमाके असुध करय, पर जऊन चीज मनखे के भीतर ले निकरथे, ओहीच ह ओला असुध करथे।
21 काबरकि भीतर ले याने कि मनखे के हिरदय ले खराप सोच-बिचार, छिनारी, चोरी, हतिया, काम-बासना, 22 लोभ, दुस्टता, छल, उघरापन, जलन, निन्दा, अहंकार अऊ गंवारपन निकरथे। 23 ए जम्मो खराप चीज हिरदय के भीतर ले निकरथे अऊ मनखे ला असुध करथे।”
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