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पुरुष का वचन स्त्री के प्रति

मेरी प्रिये, तुम अति सुन्दर हो!
    तुम सुन्दर हो!
घूँघट की ओट में
    तेरी आँखें कपोत की आँखों जैसी सरल हैं।
तेरे केश लम्बे और लहराते हुए हैं
    जैसे बकरी के बच्चे गिलाद के पहाड़ के ऊपर से नाचते उतरते हों।
तेरे दाँत उन भेड़ों जैसे सफेद हैं
    जो अभी अभी नहाकर के निकली हों।
वे सभी जुड़वा बच्चों को जन्म दिया करती हैं,
    और उनके बच्चे नहीं मरे हैं।
तेरा अधर लाल रेशम के धागे सा है।
    तेरा मुख सुन्दर हैं।
अनार के दो फाँको की जैसी
    तेरे घूंघट के नीचे तेरी कनपटियाँ हैं।
तेरी गर्दन लम्बी और पतली है
    जो खास सजावट के लिये
दाऊद की मीनार जैसी की गई।
    उसकी दीवारों पर हज़ारों छोटी छोटी ढाल लटकती हैं।
    हर एक ढाल किसी वीर योद्धा की है।
तेरे दो स्तन
    जुड़वा बाल मृग जैसे हैं,
    जैसे जुड़वा कुरंग कुमुदों के बीच चरता हो।
मैं गंधरस के पहाड़ पर जाऊँगा
    और उस पहाड़ी पर जो लोबान की है
    जब दिन अपनी अन्तिम साँस लेता है और उसकी छाया बहुत लम्बी हो कर छिप जाती है।
मेरी प्रिये, तू पूरी की पूरी सुन्दर हो।
    तुझ पर कहीं कोई धब्बा नहीं है!
ओ मेरी दुल्हिन, लबानोन से आ, मेरे साथ आजा।
    लबानोन से मेरे साथ आजा,
अमाना की चोटी से,
    शनीर की ऊँचाई से,
    सिंह की गुफाओं से
    और चीतों के पहाड़ों से आ!
हे मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन,
    तुम मुझे उत्तेजित करती हो।
आँखों की चितवन मात्र से
    और अपने कंठहार के बस एक ही रत्न से
    तुमने मेरा मन मोह लिया है।
10 मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन, तेरा प्रेम कितना सुन्दर है!
    तेरा प्रेम दाखमधु से अधिक उत्तम है;
तेरी इत्र की सुगन्ध
    किसी भी सुगन्ध से उत्तम है!
11 मेरी दुल्हिन, तेरे अधरों से मधु टपकता है।
    तेरी वाणी में शहद और दूध की खुशबू है।
तेरे वस्त्रों की गंध इत्र जैसी मोहक है।
12 मेरी संगिनी, हे मेरी दुल्हिन, तुम ऐसी हो
    जैसे किसी उपवन पर ताला लगा हो।
तुम ऐसी हो
    जैसे कोई रोका हुआ सोता हो या बन्द किया झरना हो।
13 तेरे अंग उस उपवन जैसे हैं
    जो अनार और मोहक फलों से भरा हो,
जिसमें मेंहदी
और जटामासी के फूल भरे हों; 14     जिसमें जटामासी का, केसर, अगर और दालचीनी का इत्र भरा हो।
जिसमें देवदार के गंधरस
    और अगर व उत्तम सुगन्धित द्रव्य साथ में भरे हों।
15 तू उपवन का सोता है
    जिसका स्वच्छ जल
नीचे लबानोन की पहाड़ी से बहता है।

स्त्री का वचन

16 जागो, हे उत्तर की हवा!
    आ, तू दक्षिण पवन!
मेरे उपवन पर बह।
    जिससे इस की मीठी, गन्ध चारों ओर फैल जाये।
मेरा प्रिय मेरे उपवन में प्रवेश करे
    और वह इसका मधुर फल खाये।