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प्रस्तावना

दाऊद क पूत अउ इस्राएल क राजा सुलैमान क नीतिवचन (कहावतन)। इ सबइ बातन क मनइ क बुद्धि क पावइ, अनुसासन क ग्रहण करइ, जेनसे समुझ स भरी बातन क गियान होइ, मनई धरम स पूर्ण, निआव स पूर्ण सत्त्य स पूर्ण क करम करइ क विवेकसील अउर अनुसासन मँ रहइ क जिन्नगी पावइ, सहल सोझवाले लोगन क इ सिखावाइ बरे कि विवेकसील जिन्नगी कइसे बिताइ जाइ, अउर जवान लोगन क गियान अउर बुद्धीमत्ता सिखावइ बरे, लिखा गवा अहइँ। बुद्धिमान लोगन क ओनका सुनिके आपन बुद्धि अउर समुझदारी बढ़ावइ द्या। एह बरे लिखा गवा, ताकि मनई नीतिवचन, गियानी क दृष्टान्तन क अउर पहेली भरी बातन क समुझ सकइँ।

यहोवा क डर मानब गियान क प्रारम्भ अहइ। मुला मूरख जन तउ बुद्धि अउ सिच्छा क निरर्थक मानत हीं।

विवेकपूर्ण बना चिताउनी: प्रलोभन स बचा

हे मोर पूत, आपन बाप क सिच्छा पइ धियान द्या अउर आपन महतारी क नसीहत क जिन बिसरा। उ पचे तोहार मूँड़ सजावइ क मुकुट अउ सोभा स जोरइ तोहरे गले क हार बनिहीं। चिताउनी: बुरी संगत स बचा

10 हे मोर पूत, अगर पापी लोग तोहका बहलावइ फुसलावइ आवइँ ओनकर कबहुँ जिन मान्या। 11 अउर अगर उ पचे कहइँ, “आवा हमरे संग। आ, हम पचे कउनो क घाते मँ बइठी। आ, निर्दोख पइ छुपिके वार करी। 12 आ, हम पचे ओनका जिअत ही सारा क सारा लील जाइ वइसे ही जइसे कब्र लील लेत हीं। जइसे खाले पाताल मँ कहूँ फिसरत चला जात ह। 13 हम सबहिं बहोत कीमती चिजियन पाइ जाब अउर आपन इ लूट स घरवा भरि लेब। 14 आपन भाग्य क पाँसा हम लोग आपन बीच लोकावा, हम पचे सामुहिक बटुआ क सहभागी होब।”

15 हे मोर पूत, तू ओनकर राहन पइ जिन चला, तू आपन गोड़ ओन लोगन क राहे पइ जिन रखा।

16 काहेकि ओनकर गोड़ बुराई क ओर बढ़त हीं। उ पचे रकत बहावइ क बहोत सन्नध रहत हीं।

17 उ समइ जाल क फइलाना केतना बेकार अहइ जबकि पंछी पूरी तरह स लखत हीं। 18 जउन कउनो क रकत बहावइ क इंतजार मँ बइठा अहइँ उ पचे अपने आप जालि मँ फँसि जइहीं। 19 उ सबइ जउन बेइमानी क धन हासिल करइ क जतन करत ह उ पचे आपन जिन्नगी उहइ मँ खो देत हीं।

चिताउनी: बुद्धि हीन जिन बना

20 बुद्धि, गलियन मँ गोहरावत ह, उ सर्वजनिक जगहन मँ आपन आवाज उठावत ह। 21 सोर स भरी गलियन क नोक्कड़ पइ गोहरावत ह, सहर क फाटक पइ आपन भासण देत ह:

22 “अरे नादान लोगन! तू कब तलक आपन नादानी स पिरेम करत रहब्या? हँसी ठ्टाकरइवालन, तू कब तलक ठटा करइ मँ आनन्द लेब्या? अरे मूर्खो, तू कब तलक गियान स घिना करब्या? 23 अगर मोर फटकार तोह पइ असर डावत तउ मइँ तोह पइ आपन हिरदय उड़ेर देत अउर तोहका अपने सबहिं विचार देखाइ देतेउँ।

24 “मुला काहेकि तू तउ मोका नकार दिहा जब मइँ तोहका गोहराएउँ, अउर कउनो धियान नाहीं दिहस, जब मइँ आपन हथवा बढ़ाए रहेउँ। 25 तू मोर सबहि उपदेस क उपेच्छा किहा अउर मोर फटकार कबहुँ नाहीं स्वीकार किहा। 26 एह बरे, बदले मँ, मइँ तोहरे नासे पइ हँसब। मइँ हँसी ठट्टा करब जब तोहार बिनास तोहका घेरी। 27 जब बिनास तोहका वइसे ही घेरी जइसे खउफनाक बबूला क चक्रवाद घेरत ह, जब बिनास जकड़ी, अउर जब बिनास अउ संकट तोहका बोर देइहीं।

28 “तब, उ पचे मोका गोहरइहीं किंतु मइँ कउनो भी जवाब नाहीं देबउँ। उ पचे मोका हेरत फिरिहीं मुला नाहीं पइहीं। 29 काहेकि उ पचे हमेसा गियान स घिना करत रहेन, अउर उ पचे कबहुँ नाहीं चाहेन कि उ पचे यहोवा स डेराइँ। 30 काहेकि उ पचे, मोर उपदेस कबहुँ धारन नाहीं किहन, अउर मोर डाट-फटकार क रद्द करिहीं। 31 उ पचे अपन जीवन क करमन क फल जरूर भोगिहीं, उ पचे आपन बुरे जोजना स खुद आपन पेट भरिहीं।

32 “नादान लोगन क हटी ओनका ही बिनास करिहीं मूरखन लोगन क लापरवाही वाला रवैया ओनका नस्ट कइ देइ। 33 मुला जउन मोर सुनी उ सुरच्छित रही, उ बगैर कउनो नोस्कान अउर कउनो डर क हमेसा चैन स रही।”