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13 समुझदार पूत आपन बाप क सिच्छा पइ कान देत ह। मुला बिद्रोह पूत झिड़की पइ भी धियान नाहीं देत ह। सज्जन आपन वाणी क सुफल क आनंद लेत हीं मुला दुर्जन तउ सदा हिंसा चाहत ह।

जउन आपन वाणी क बरे चौकस रहत ह, उ आपन जिन्नगी क रच्छा करत ह। पर जउन गाल बजावत रहत ह, आपन बिनास क पावत ह।

आलसी मनइ चिजियन क लालसा करत ह पर कछू नाहीं पावत, मुला एक ठू परिस्रमी क जेतनी भी इच्छी अहइ, पूर्ण होइ जात ह।

धर्मी मनई ओहसे घिना करत ह, जउन झूठ अहइ जबकि दुट्ठ लज्जा अउ अपमान लिआवत हीं।

सच्चरित्र मनई क रच्छा करइवाली नेकी अहइ; जबकि दुट्ठता पापी मनइयन क नास करत ह।

एक ठु मनई जउन धन क देखावा करत ह, किंतु ओकरे लगे कछु भी नाहीं होत ह। किन्तु एक दूसर जउन गरीबी क जिन्नगी गुजारत ह ओकरे लगे बहोत धन होत ह। धनवान क आपन जिन्नगी बचावइ ओकर धन फिरौती मँ लगावइ पड़ी मुला दीन जन कउनो धमकी क भय स अजाद अहइ।

धर्मी मनई क जिन्नगी प्रकास क नाईं चमचमात ह। किंतु दुट्ठ मनई क दिया बुझाइ दीन्ह जात ह।

10 अहंकार सिरिफ झगड़न क पनपावत ह। मुला विवेक उ अहइ जउन दूसर क राय क मानत ह।

11 बेइमानी क धन यूँ ही धूरि होइ जाता ह मुला जउन परिस्रम कइके धन संचित करत ह, ओकर धन बाढ़त ह।

12 जदि कउनो आसा नाही होइ तउ मन उदास होइ जात ह, मुला कामना क पूर्ति खुसी देत ह।

13 जउन जन सिच्छा क निरादर करत ह, ओका एकर कीमत चुकावइ क पड़ी। मुला जउन सिच्छा क आदर करत ह, उ तउ एकर प्रतिफल पावत ह।

14 विवेक क सिच्छा जिन्नगी क उद्गम सोता बाटइ, उ लोगन क मउत क फंदे स बचावत ह।

15 उ जउन अच्छा समुझ बूझ रखत ह खियाती अर्जित करत ह, पर विस्सासघात सिरफ विस्साघात ही लावत ह।

16 हर एक विवेकी गियान क साथ काम करत ह, मुला एक मूरख आपन बेवकूफी परगट करत ह।

17 दुट्ठ सन्देसवाहक बिपत्ति मँ पड़त ह, मुला बिस्सास क जोग्ग दूत सांति देत ह।

18 अइसा मनई जउन सिच्छा क उपेच्छा करत ह, ओह पइ लज्जा अउ गरीबी आइ पड़त ह। मुला जउन डाँट फटकार पइ कान देत ह, उ महत्व वाला मनइ होइ जाइ।

19 कउनो इच्छा क पूर होइ जाब मने क मधुर लागत ह। किन्तु मूरखन क बुरा क तजब नाहीं भावत ह।

20 बुद्धिमान क संगति, मनई क बुद्धिमान बनावत ह। किंतु मूरखन क साथी नस्ट होइ जात ह।

21 दुर्भाग्य पापियन क पाछा करत रहत ह; किंतु धर्मियन प्रतिफले मँ खुसहाली पावत हीं।

22 सज्जन आपन नाती-पोतन क धन सम्पत्ति छोड़तह जबकि पापी क धन धर्मियन क खातिर संचित होत रहत ह।

23 दीन जन क खेत भरपूर फसल देत ह, मुला अनिआव ओका बुहार लइ जात ह।

24 जउन आपन पूते क कबहुँ नाहीं दण्डित करत, उ आपन पूत क दुसमन अहइ। मुला जउन आपन पूत स पिरेम करत ह तउ उ ओका अनुसासन मँ राखत ह।

25 धमीर् जन, मने स खात अउर पूरी तरह तृप्त होत हीं किन्तु दुट्ठ क पास प्रयाप्त भोजन नाही होत ह।